ठीक 11 साल पहले एक जन-सैलाब उमड़ा था. जय प्रकश नारायण के आंदोलन के इतने सालों बाद पहली बार किसी मकसद के लिए देश की जानता एक सत्याग्रही के साथ आयी थी. इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि एक आम से आदमी ने सत्ता के बीच घुस कर ऐसा कोहराम मचाया हो. 11 साल पहले हुआ था अन्ना का ‘लोकपाल आंदोलन’.

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दिल्ली के रामलीला मैदान में 2011 में अन्ना ने लोकपाल बिल को संसद में पास करने के लिए अनशन किया था. उनके इस अनशन में सत्ताधारी कांग्रेस और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया. दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री, अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, कुमार विश्वास, भूषण पिता-बेटे, अन्ना टीम का हिस्सा थे.

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2011 के Anti-Corruption Movement की, ये हैं कुछ तस्वीरें:

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7 साल बाद अन्ना ने फिर अनशन शुरू किया है. इस बार उनके साथ ये सभी चहेरे नहीं हैं. ये सत्याग्रही लोकपाल लागू करने को लेकर अपनी मांग के लिए अनिश्चित भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. जगह इस बार भी वही है, रामलीला मैदान. 23 मार्च, शहीदी दिवस को अपने अनशन की शुरुआत करने वाले अन्ना का साथ देने इस बार महाराष्ट्र और देश भर के कई किसान साथ आये हैं. क्योंकि अन्ना की मांगों में एक मांग किसानों के हक़ में बने स्वामिनाथन कमीशन की गाइडलाइन्स को लागू करना भी है.

इस बार अन्ना की लड़ाई मोदी सरकार के ख़िलाफ़ है. सरकार पर निशाना साधते हुए अन्ना ने कहा कि ये सरकार धूर्त है. हम जिस ट्रेन से मुंबई से दिल्ली आ रहे थे, इन्होंने वो ट्रेन कैंसल करने की कोशिश की. मैं पिछले तीन साल से शांति से इस सरकार से लोकपाल और किसानों के मुद्दे पर बात करने की कोशिश कर रहा हूं. अनशन की शुरुआत करने से पहले अन्ना ने अपने समर्थकों के साथ राज घाट और शहीदी स्मारक जा कर गांधी जी और शहीदों को नमन किया.

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अन्ना का ये आंदोलन एक अच्छे मक़सद के लिए है और इसे मनवाने के लिए वो अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार हैं. इस देश के नागरिक होने के नाते, उनका साथ दे कर हम इतना तो कर ही सकते हैं.