बीते सोमवार को भारत की सबसे आलीशान ट्रेन, तेजस सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस को गोवा से मुम्बई चलने की हरी झंडी दिखा दी गई. रेल मंत्री समेत सभी भारतीयों के लिए ये गर्व की बात थी क्योंकि इस ट्रेन की सुविधाएं हवाई जहाज़ से कम नहीं. पर्सनल LED स्क्रीन, हेडफ़ोन के अलावा कॉफ़ी वेंडिंग मशीन, CCTV कैमरा और WiFi जैसी कई सुविधाएं इसमें हैं. ट्रेन का न्यूनतम किराया Rs 1,185 और अधिकतम Rs 2,740 है.
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पहली यात्रा में चोरी हो गए हे Headphone और LED हुई डैमेज!
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जितनी खुशी आपको तेजस एक्सप्रेस के चलने की नहीं हुई होगी, उससे ज़्यादा दुख ये जान कर होगा कि करीब दो हज़ार का टिकट खरीदने वाले लोगे भी चोरी करने से नहीं चूंकते. मुम्बई मिरर में छपी ख़बर के अनुसार, करीब एक दर्जन से ज़्यादा हेडफ़ोन ट्रेन की यात्रा के पहले दिन ही चोरी हो गए. इसके अलावा कुछ LED स्क्रीन्स पर भी स्क्रैच दिखाई पड़े हैं. रेलवे का कहना है कि उन्होंने सोचा कि यात्री समझदार हैं और तकिया-कंबल की तरह हेडफ़ोन भी छोड़ कर जाएंगे, लेकिन रेलवे को भारतीयों की परख नहीं है शायद. कुछ दिन पहले इस ट्रेन की खिड़की का कांच भी टूटा मिला था.
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क्या विकास की मांग करने वालों की सोच विकसित हुई है?
यात्रियों के लिए ये ट्रेन किसी हवाई जहाज़ से कम नहीं, बस ये उड़ नहीं सकती. लेकिन क्या भारत के यात्री इस तरह की ट्रेन के लायक हैं? हम उम्मीद करते हैं कि देश के इस विकास के साथ लोगों का सहयोग रहेगा. लेकिन करीब 125 करोड़ की आबादी वाले देश में समझदारी से ज़्यादा चिन्दी हरकतें करने वाले लोग बसे हैं. ये बातें तो विकास की करते हैं, लेकिन जब बात ख़ुद पर आती है, तो ऐसे मुंह फेर लेते हैं जैसे अजनबी को देख लिया हो. ये टैक्स में चोरी करते हैं और चार लोगों में बैठ कर देश के नेताओं पर सारे इल्ज़ाम लगा देते हैं. ये वही हैं, जो अच्छे दिन की मांग करते हैं और जब कुछ अच्छा हुआ है, तो ऐसी चिन्दी हरकतें कर रहे हैं. हम तब तक सकारात्मक बदलाव की बात नहीं कर सकते, जब तब हम सावर्जिनक प्रॉपर्टी को अपने पिता जी की न मान कर, सबकी मानना शुरू नहीं कर देते. अगली बार बदलाव की बात करने से पहले हमें ये देखना होगा कि हम कितने बदले हैं.