दुनिया भर में आम लोगों से लेकर चर्चित सितारे आज सरोगेसी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. भारत में आमिर खान, करण जौहर, शाहरुख खान जैसे सुपरस्टार्स भी इस तकनीक की मदद से अपने घर में नन्हें मेहमान का स्वागत कर चुके हैं. एक एनजीओ के मुताबिक, 2004 में जहां अमेरिका में केवल 738 लोगों ने सरोगेसी का इस्तेमाल किया था वहीं 2011 में ये संख्या बढ़कर 1593 हो गई थी.

हालांकि सरोगेसी या आसान शब्दों में कहें तो किराए की कोख, कई लोगों के लिए नैतिकता का मुद्दा भी बन जाती है. इस तकनीक में तीसरे इंसान की मौजूदगी कई बार लोगों को भावनात्मक उलझनों में डाल देती है.

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लेकिन लगता है कि सरोगेसी के दिन लदने वाले हैं. हाल ही में बायोडिज़ाइन चैलेंज समिट में 22 यूनिवर्सिटी के 24 छात्रों ने हिस्सा लिया था. इस समिट में ये छात्र अपने साइंस प्रोजेक्ट को दुनिया के सामने पेश कर रहे थे. ArtEZ प्रॉ़डक्ट डिज़ाइन Arnhem के छात्रों ने भी यहां एक दिलचस्प प्रॉजेक्ट पेश किया जिसे प्रेग्नेंसी से जुड़ा एक क्रांतिकारी कॉन्सेप्ट माना जा रहा है.

Par-tu-ri-ent एक कृत्रिम Incubator है. Incubator यानि वो मशीन, जिसका इस्तेमाल समय से पहले जन्मे बच्चे को ज़िंदा रखने के लिए किया जाता है. इस मशीन की मदद से महिलाओं के भ्रूण को उनके शरीर के बाहर ही विकसित किया जा सकता है. ये एक तरह का कृत्रिम गर्भाशय है जिसमें गर्भ धारण की पूरी प्रक्रिया को शरीर के अंदर नहीं बल्कि बाहर संभव बनाया जाता है.

ये मशीन इंटरनेट से जुड़ी है और इसमें एक पारदर्शी घुमावदार Lid है. पारदर्शी होने के चलते इसमें भ्रूण के विकसित होने की प्रक्रिया को आसानी से देखा जा सकता है. 9 महीने पूरे होने के बाद Lid को हटा कर डिलीवरी होती है. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे किसी डिब्बे के ऊपर से ढक्कन हटाया जाता है.

इस तरीके की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये हमेशा इस बात का भी ख्याल रखेगा कि बच्चे ने क्या खाया है और उसे किस तरह के न्यूट्रीशिन की ज़रूरत है. खाने के लिए एक छोटी सी ट्यूब भी इस Product के साथ उपलब्ध है.

गर्भ के दौरान बच्चे को मां की मौजूदगी की ज़रुरत पड़ती ही है. इसी समस्या के हल के लिए इस मशीन के साथ एक माइक्रोफ़ोन भी मौजूद है, जो आवाज़ रिकॉर्ड कर सकता है. इसके चलते बच्चा, माता-पिता की आवाज़ को महसूस कर सकता है.

इस मशीन में लगे पोर्टेबल यंत्र की मदद से माता पिता भी बच्चे के मूवमेंट्स को महसूस कर सकते हैं. इस बटन को दबाने पर बच्चे को अपनी मां की मौजूदगी का एहसास होता है.

ज़ाहिर है, इस तकनीक की मदद से दुनिया के कई देशों की सामाजिक संरचना में तब्दीली आ सकती है. कई महिलाएं ऐसी हैं जो स्वास्थ्य समस्या या जेनेटिक डिसऑर्डर के चलते मां नहीं बन पाती. ऐसी महिलाओं के लिए अब सरोगेसी के अलावा ये तकनीक भी उपलब्ध होगी. इसके अलावा ये तकनीक प्रीमेच्योर बच्चों के लिए भी फ़ायदेमंद है लेकिन सवाल वही है कि क्या अब औरतें प्रेग्नेंसी की जटिलताओं से मुक्त हो पाएंगी?

सुनने में ये तकनीक भले ही किसी साइंस फ़िक्शन फ़िल्म की तरह लगे लेकिन इन छात्रों का इसे एक असली प्रॉडक्ट में तब्दील करने का कोई इरादा नहीं है. हालांकि इसी सम्मेलन में मौजूद बायोपॉलिटिकल आर्टिस्ट हीथर हैगबोर्ग का कहना था कि इस दिशा में साइंस बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है .

Source: Fatherly