कलाकार हमेशा अपने देश और समाज के वर्तमान को अलग-अलग माध्यमों के ज़रिये दर्ज करता है. ऐसा ही कुछ कर रहें हैं भारत के सबसे जाने-माने कलाकारों में से एक जतिन दास, जो लॉकडाउन के दौरान शहरों से अपने घर पैदल जाने वाले प्रवासी कामगारों की दुर्दशा देखकर विचलित हो गए थे. उन लोगों के हालात को अब जतिन ने कैनवास पर उतारा है.
Art Alive गैलरी, नई दिल्ली में Exodus 2020 के नाम से उनकी 200 इंक पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी है, जिसमें उन्होंने शहरी प्रवासी मज़दूरों के भयावह अनुभवों को सामने लाने की कोशिश की है.
ओडिशा में जन्मे जतिन का कहना है कि शहर से बेरोज़गार होकर हज़ारों किलोमीटर दूर अपने गांवों को पैदल लौटे लोगों के दृश्य से दुःखी और परेशान हो गए थे. 79 साल के दास कहते हैं कि इसी पलायन ने उन्हें पेंट करने के लिए प्रेरित किया.
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ग़ौरतलब है कि पिछले साल मार्च से जून के दौरान लगे सख़्त लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर क़रीब 10 करोड़ प्रवासी मज़दूरों पर हुआ था. हज़ारों लोग सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव-घर जाने को निकले थे, जिनमें से कम से कम 500 लोगों की मौत रास्ते में ही हो गयी थी. इस दौरान कोरोना को देखते हुए सरकार ने रेलवे और बस सर्विस काफ़ी हद तक बंद कर रख थी.
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15 मार्च तक चलने वाली इस प्रदर्शनी की लगभग 50 पेंटिंग्स में नंगे पांव चलते हुए श्रमिकों की पेंटिंग्स, अपने थोड़े से सामान के साथ साइकिल से जाते हुए लोग, बस-टैम्पो के ऊपर लदी भेड़-बकरियों और लोगों की दुर्दशा, आदि चित्रित हैं.
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