मुश्किलें सबकी ज़िंदगी में आती हैं कोई बिखर जाता है और कोई निखर जाता है. वेस्ट बंगाल के दुर्गाुृपुर की ‘बेबी हलदर’, संघर्ष की वो मिसाल जिसने हर मुसीबतों से लड़कर अपना नाम बनाया है. मगर इस नाम के पीछे बहुत दर्द छुपा है. वो दर्द अपनों ने दिया है बेबी को. बेबी जब 4 साल की थीं, तो उनकी मां उनका साथ छोड़कर चली गईं. इसके बाद 12 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी गई. तब भी ख़ुशियों ने बेबी का दामन नहीं थामा. शादी की पहली रात बेबी के पति ने उनका रेप कर दिया. बेबी ने शादी के 25 साल सिर्फ़ गालियां खाई और प्रताड़ना झेली. 

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जब वो इस तिरस्कार से थक गईं, तो अपने दो बच्चों के साथ घर छोड़कर दिल्ली आ गईं. यहां पर उन्होंने रिटायर्ड मानव विज्ञान प्रोफ़ेसर और महान लेखक प्रेमचंद के पोते प्रबोध कुमार के घर पर बाई का काम करना शुरू कर दिया. यहां काम करते हुए उनकी ज़िंदगी ने यू-टर्न लिया.

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घर की साफ़-सफ़ाई के दौरान अकसर वो बुक शेल्फ़ को निहारतीं और कभी-कभी बंगाली किताबों को उठाकर पढ़ने भी लगती थीं. इनके किताबों से लगाव को देखकर प्रबोध ने बेबी को तसलीमा नसरीन की एक किताब थी. इसे पढ़ने के बाद प्रबोध ने उनको खाली नोटबुक दी और अपनी कहानी लिखने को कहा.

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इस वाक्ये का ज़िक्र बेबी ने अपने एक इंटरव्यू में करते हुए बताया कि,

पहले मैं घबरा गई. क्योंकि मैंने सिर्फ़ 7वीं क्लास तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन जैसे ही मैं किताब लिखने बैठी तो मेरे अंदर एक अलग ही कॉन्फ़िडेंस आ गया. किताब लिखना मेरे लिए अच्छा अनुभव रहा. 

-बेबी हलदर

बेबी की लिखी इस किताब को पढ़कर प्रबोध भावुक हो गए और उन्होंने इसका हिंदी अनुवाद किया. इसके बाद 2002 में ये किताब ‘आलो आंधारी’ के नाम से प्रकाशित हुई. ये किताब इंग्लिश में भी पब्लिश हुई थी.

‘बेबी हलदर’ आज साहित्य की दुनिया का जाना-माना चेहरा हैं. पेरिस, हॉन्ग कॉन्ग जैसे देशों में वो टूर कर चुकी हैं. 24 भाषाओं में उनकी किताबों का अनुवाद हो चुका है. दुनिया के कई हिस्सों में वो लिट्रेचर फे़ेस्टिवल में हिस्सा ले चुकी हैं. बेबी हलदर अब तक चार किताबें लिख चुकी हैं.   

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आपको बता दें कि बेबी आज एक मशहूर लेखिका हैं फिर भी वो अब तक बाई का काम करती हैं. इसकी वजह पूछने पर बेबी कहती हैं कि जिन्होंने मुझे काम दिया और लेखन के लिए प्रेरित किया मैं उन्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी.

बेबी की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो ज़िंदगी को मुश्किलों के चलते जीना भूल जाते हैं.