बेंगलुरु से दो भाइयों की ऐसी कहानी सामने आई है जो आपके चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाएगी.  

बेंगलुरु के रहने वाले 52 वर्षीय डॉ. अर्जुन श्रीवात्स और 51 वर्षीय अनिल श्रीवात्सने ‘वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम 2019’ में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया है. 

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ब्रिटेन के न्यूकैसल में 17 अगस्त से 24 अगस्त तक आयोजित इस प्रतियोगिता के दौरान भारत ने 4 गोल्ड और 3 सिल्वर मेडल अपने नाम किये. इस प्रतियोगिता में 2,237 ऑर्गन रिसीवर्स और डोनर्स ने 15 खेलों के लिए भाग लिया था.

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प्रतियोगिता के दौरान न्यूरोसर्जन डॉ. अर्जुन ने ऑर्गन रिसीवर के अंतर्गत ‘गोल्फ़’ में एक गोल्ड मेडल जीता. जबकि उनके छोटे भाई अनिल जो एक व्यवसायी हैं, उन्होंने ऑर्गन डोनर के अंतर्गत ‘बॉल थ्रोइंग’ में गोल्ड मेडल जीता.

दरअसल, अनिल जो एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं उन्होंने सितम्बर 2014 में अपनी किडनी अपने बड़े भाई अर्जुन को डोनेट की थी. अर्जुन बहुत समय से किडनी फ़ेलियर का सामना कर रहे थे. 

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TOI से बातचीत में अनिल ने कहा कि, अर्जुन का गोल्फ़ में गोल्ड मेडल जीतना मेरे लिए सबसे ज़्यादा ख़ुशी की बात थी. वो एक अच्छे गोल्फ़र हैं. उसकी मेहनत का फल उसको मिला है. आसान भाषा में कहूं तो मेरी किडनी ने खेल जीता क्योंकि उसके पास मेरी ही तो किडनी है. खेल में जीत स्किल और प्रयास से ही मिलती है.  

इन दोनों भाइयों के इलावा भोपाल की 26 वर्षीय अंकिता श्रीवास्तव ने बॉल थ्रोइंग और लॉन्ग जम्प में 2 गोल्ड स्वर्ण मेडल जीते साथ ही 100 मीटर की दौड़ में भी उन्होंने सिल्वर मेडल जीता. वहीं उत्तर प्रदेश के बलवीर सिंह ने बैडमिंटन सिंगल्स में सिल्वर जबकि मध्यप्रदेश के दिग्विजय सिंह गुज़राल ने भी Squash में सिल्वर मेडल जीता.   

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इस प्रतियोगिता की सबसे ख़ास बात ये थी कि जहां एक ओर बाक़ी देशों की टीम को उनकी सरकारों से मदद मिली थी. वहीं इन खिलाड़ियों को भारत सरकार से कोई मदद नहीं मिली थी. इस दौरान इन खिलाड़ियों की मदद ‘लाइट अ लाइफ़ फाउंडेशन’ नाम के एक एनजीओ ने की थी.  

डॉ अर्जुन ने भारतीय टीम की मैनेजर रीना के प्रयासों की तारीफ़ करते हुए कहा कि रीना राजू बेंगलुरु से हैं और वो भारत की पहली महिला हैं जो दो बार हार्ट ट्रांसप्लांट करवा चुकीं हैं. 

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रीना बताती हैं, ‘हमारा उद्देश्य ये सुनिश्चित करना था कि खिलाड़ियों के पास वो सब कुछ हो जो उन्हें खेल के दौरान चाहिए. रजिस्ट्रेशन में थोड़ी सी गड़बड़ी या देरी हमें खेल से बाहर कर सकती है. खिलाड़ियों की फ़िटनेस का ख़्याल रखना भी महत्वपूर्ण था. हमने सभी 14 खिलाड़ियों की हर स्टेप पर मदद की ताकि वो अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें. 

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इस तरह के अंतररष्ट्रीय खेल इस बात का सबूत हैं कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट न तो डोनर और न ही रिसीवर के लिए स्वास्थ के लिहाज़ से एक रुकावट हैं. लोग चाहें तो क्या कुछ नहीं कर सकते.