कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनका नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं होता. ऐसे ही लोगों में एक नाम भगत सिंह का भी है, जिन्हें हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी बड़ी शिद्दत और सम्मान के साथ याद किया जाता है. आज़ादी के जिस मतवाले ने ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदे को गले लगा लिया, उसे वैसे भी कौन भूल सकता है. आज भगत सिंह बेशक हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी किताबें, आदर्श और चीज़ें आज़ादी में उनकी लड़ाई की गवाही देती रहती हैं.

ऐसी ही एक गवाह भगत सिंह की वो बन्दूक भी है, जिससे 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने ब्रिटिश अफसर जॉन सैंडर्स को गोली मारी थी. हाल ही में 90 साल बाद इसी बन्दूक को लोगों को दिखाने के लिए निकाला गया है. 0.32 mm की इस कोल्ट ऑटोमैटिक गन को इंदौर के CSWT सीमा सुरक्षा बल के फायरिंग रेंज में डिस्प्ले पर रखा गया है, जिससे लोगों को एक बार फिर भगत सिंह की यादों में खो जाने का मौका मिले.

इस गन को डिस्प्ले पर लगाने की ज़िम्मेदारी CSWT संग्रहालय के संरक्षक असिस्टेंट कमांडेंट विजेंद्र सिंह ने ली है. विजेंद्र सिंह का कहना है कि उन्होंने इस गन के सीरियल नंबर को जब रिकॉर्ड्स से मिलाया, तब ये बात सामने आई कि ये वही बन्दूक है, जिससे भगत सिंह आज़ाद देश की कहानी लिखने के लिए निकले थे. वो इस गन को लोगों के सामने रखने के लिए बहुत उत्साहित थे. इस म्यूज़ियम में ऐसे ही कई हथियारों को जगह दी गई है, जिनसे इतिहास की झलक देखने को मिलती है. इसके अलावा यहां विंटेज हथियारों से ले कर मॉर्डन वीपन्स का कलेक्शन भी लोगों को दिखाने के लिए रखा गया है.