बॉम्बे हाई कोर्ट ने बच्चों के स्कूल बैग के वजन को कम करने की एक याचिका को यह कह कर ख़ारिज कर दिया कि नए दिशा निर्देश की ज़रूरत नहीं है, बच्चे ‘बिना वजह भारी बैग’ न ले जाएं और किताब भी पहले से ‘पतली’ होने लगी हैं. 

Business Insider

अपने आदेश में कोर्ट ने कहा- 

हमारे समय में, हमारी किताबें मोटी हुआ करती थीं. अब तो किताबें पतली होने लगीं. अब वो जेंडर-न्युट्रल भी हैं. किताबें.हमारी किताबों में सिर्फ़ महिलाओं को घर का काम करता दिखाया जाता था, आज की किताबें में पुरुषों को भी पोछा मारते दिखाया जाता है.

इस जनहित याचिका को सामाजिक कार्यकर्ता स्वाती पाटिल ने साल 2015 में दायर किया था. याचिका में दावा किया गया था कि बच्चों के अपने वजन से 30% वजन वाली बैग उठाना पड़ता है. 

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Justice Pradeep Nandrajog और Justice N.M. Jamdar की डिविजन बेंच इस याचिका की सुनवाई कर रही थी. जब वकील Nitesh Nevshe ने जब साहेब के सामने ये तर्क रखा कि भारी बस्तों से बच्चों में बैक पेन की समस्या होने लगती होती है. इसपर मुख्य न्यायाधिश ने आगे जो कहा वो आपको अपने दादा जी याद दिलाएगा क्योंकि उसी किस्सागोई भरे अंदाज़ में जज साहब ने अपना अनुभव साझा किया- 

मैं हर रोज़ सात किलोमिटर बैग लेकर जाता था… हमारे बैक में कभी Spondylitis क्यों नहीं हुआ?
The Hindu

ऐसी कहानियां हम आज भी अपने घरों में मम्मी-पापा से सुनते रहते हैं, ‘बेटा तुमने देखा ही क्या है… हमारे ज़माने में तो…’ 

बैग क्यों भारी है? क्योंकि बच्चे अपने टाइमटेबल के साथ किताबें नहीं ले जाते, वो सभी किताबों को ले जाते 

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि वो NCRT की वेबसाइट खंगाले. उनके पाठ्यक्रम में कोई समस्या दिखे तो दोबारा कोर्ट आ सकते हैं.