केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) हमेशा चर्चा में बना रहता है, कभी अपने अध्यक्षों की वजह से तो कभी फ़िल्मों में कट लगवाने की वजह से. हालिया मामला कोर्ट की फ़टकार का है.

Children’s Film Society India(CFSI) ने एक पिटिशन दायर कर फ़िल्म चिड़ियाखाना के लिए Universal Certificate की मांग की है.
इसी साल जनवरी में CBFC ने फ़िल्म के निर्माताओं को मूवी से कुछ शब्दों और कुछ सीन को हटाने की मांग की थी. रिपोर्ट्स के अनुसार CFSI इन शर्तों को मान चुकी थी बावजूद इसके CBFC ने फ़िल्म में हिंसा और भेदभाव होने की वजह से U/A Certificate दे दिया.

हालांकि न्यायाधीश एस. सी. धर्माधिकारी और गौतम पटेल की बेंच CFSI के साथ खड़ी हुई और CBFC के फ़ैसले को पलट दिया. न्यायाधीश पटेल ने बोर्ड को याद दिलाया कि उनका काम सर्टिफ़िकेट देना है न की सेंसर करना.
आपका(CBFC) एक सर्टिफ़िकेशन बोर्ड हैं न कि सेंसर बोर्ड. आप यह तय नहीं कर सकते कि कोई क्या देखना चाहता है. किसी ने CBFC को ये बौद्धिक अधिकार नहीं दिया कि वो ये तय करे कि लोग क्या देखना चाहते हैं.
You Will Not Decide What One Wants To Watch, You Are A Certification Board Not Censor Board: Bombay HC to CBFC
— Live Law (@LiveLawIndia) July 6, 2019
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न्यायाधीश पटेल ने CBFC के ऊपर ये भी टिप्पणी की कि बोर्ड को ख़ुद को ये नहीं समझना चाहिए कि उसके पास लोगों के इंटेलिजेंस का अकेला अधिकार है और न ही उन्हें राज्य के ताज़ा हालत को बच्चों से छिपाने की ज़रूरत है.
क्या आप(CBFC) शुतुरमुर्ग हैं? अपना सिर रेत में धंसा कर ये मानने लगते हैं कि कोई चीज़ अस्तित्व में ही नहीं है. आप इन समस्याओं के बारे में बच्चों को कैसे बताएंगे? ये सही नहीं होगा कि बच्चों को ऐसी फ़िल्म दिखाएं और उन्हें समझाएं कि ये क्या है और ग़लत है?
बता दें कि चिड़ियाखाना की कहानी एक बिहारी बच्चे की है, जिसका सपना फ़ुटबॉलर बनने का है और इसे पूरा करने वो मुंबई जाता है.