ब्रिटिश सरकार ने 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुए ‘जलियांवाला बाग़ नरसंहार’ पर गहरा दुःख व्यक्त किया है, लेकिन अब भी आधिकारिक रूप से माफ़ी नहीं मांगी है.
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‘जलियांवाला बाग़ नरसंहार’ को लेकर ब्रिटिश सरकार के मंत्रियों ने एक बयान जारी कर 379 भारतीय नागरिकों की हत्या पर ‘गहरा दुःख’ व्यक्त करते हुए इस घटना की आलोचना की है.
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‘जलियांवाला बाग़ कांड’ के सौ साल पूरे होने के मौके पर आने वाले मंगलवार को एक कॉमन्स डिबेट होगी, ताकि भारत-ब्रिटेन संबंधों में सुधार की कोशिश की जा सके. कहा तो ये भी जा रहा है कि आधिकारिक माफ़ी के सिलसिले में ब्रिटिश विदेश सचिव जेरेमी हंट भारत दौरे पर आ सकते हैं.
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इससे पहले इसी साल फ़रवरी में इस नरसंहार के शताब्दी वर्ष के सिलसिले में ब्रिटिश संसद में हुई बहस के दौरान मंत्री एनाबेल गोल्डी ने सदन से कहा था कि घटना के 100 साल पूरे होने के मौके पर ब्रिटिश सरकार औपचारिक माफ़ी की मांग पर विचार कर रही है.
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‘संडे टाइम्स’ के अनुसार विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री, मार्क फ़ील्ड ने कहा कि अगले हफ़्ते होने वाली वेस्टमिंस्टर डिबेट में इस विषय पर औपचारिक स्वीकृति महत्वपूर्ण है. अगर ऐसा होता है, तो इससे द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती मिलेगी.
हालांकि, पूर्व प्रधान मंत्री डेविड कैमरन इस नरसंहार को ‘ब्रिटिश इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना’ करार दे चुके हैं.
कब हुआ था जलियांवाला बाग़ नरसंहार?
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अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को महात्मा गांधी की तरफ़ से देश में चल रहे ‘असहयोग आंदोलन’ के समर्थन में हज़ारों लोग एकत्र हुए थे. जनरल डायर ने इस बाग के मुख्य द्वार को अपने सैनिकों और हथियारंबद वाहनों से रोककर निहत्थी भीड़ पर बिना किसी चेतावनी के 10 मिनट तक गोलियों की बरसात कराई थी. इस घटना में तकरीबन 370 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 1500 से ज़्यादा घायल हुए थे.