कोरोना वायरस के चलते देशभर में जारी लॉकडाउन के बीच ग़रीब दिहाड़ी मज़दूरों की ज़िंदगी बदहाली में गुज़र रही है. इन ग़रीब मज़दूरों के पास न खाने को राशन है न ही राशन ख़रीदने के लिए पैसा. ऐसे में दिल्ली में यमुना किनारे रहने वाले मज़दूर भी भूख-प्यास से बेहाल हैं.   

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इस बीच यमुना पर बने एक छोटे से आईलैंड पर रहने वाले 80 लोगों के लिए भोजन सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. दरअसल, इस छोटे से आईलैंड तक पहुंचने के लिए बोट का सहारा लेना पड़ता है. लॉकडाउन के चलते लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल है. इसलिए इन ग़रीब दिहाड़ी मज़दूरों की मदद के लिए लोग आगे नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में ये लोग भूखे-प्यासे इस आईलैंड पर रहने को मज़बूर हैं. 

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बीते रविवार को मयूर विहार के चिल्ला यमुना खादर के निवासियों को जब इस बारे में पता चला वो भोजन व राशन के साथ कार, मोटरसाइकिल और नाव का सहारा लेकर इस आईलैंड तक पहुंचे. ये लोग एक नाव में पूड़ी, सब्ज़ी, हलवा और बच्चों के चिप्स, बिस्किट्स लेकर गए. कई दिन से भूखे इन लोगों ने भोजन देखकर राहत की सांस ली. 

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मयूर विहार के रहने वाले वीरेंद्र सचदेवा ने बताया कि जब हमें इस आईलैंड पर लोगों के भूखे होने की सूचना मिली तो हमने आस पड़ोस के लोगों की मदद से इनके लिए भोजन की व्यवस्था करने का फ़ैसला किया. इसके बाद हमने एक मिठाई की दुकान के बाहर इन लोगों के लिए खाना बनाना शुरू किया. 

इस दौरान हमारे कुछ साथी पके हुए भोजन को डिब्बों में पैक करते हैं. जबकि कुछ लोग इसे कार में रखकर DND तक पहुंचाते हैं. इसके बाद कार से भोजन उतारकर उसे बाइक से 3 किमी कीचड़ भरे रास्ते से होते हुए यमुना किनारे तक पहुंचाया जाता है. यमुना किनारे हमारे कुछ साथी सूरज नाम के एक मछुआरे के साथ भोजन ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए बोट के साथ तैयार रहते हैं. 

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आख़िरकार नाव से 15 मिनट की सवारी के बाद भोजन इन ग़रीब मज़दूरों तक पहुंचता है. 

इस आईलैंड पर रहने वाले अधिकतर लोग ओखला की दुकानों, निर्माण स्थलों, सब्जी उगाने, मछली पकड़ने और दूसरों के घरों में काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करता है. टेंट और छोटी झोपड़ियों में रहने वाले इन लोगों के पास बिजली या एलपीजी कनेक्शन भी नहीं है. लॉकडाउन के चलते उनके पास न तो कोई काम है न ही ये कहीं जा पा रहे हैं. 

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लॉकडाउन से पहले ये लोग किराने का सामान, सब्जियां और पीने के पानी के लिए ओखला जाया करते थे, लेकिन लॉक डाउन के चलते दुकानें बंद होने से उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है. नहाना तो दूर की बात इन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं मिल पा रहा है. 

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मयूर विहार के एक ब्यूटी पार्लर में क्लीनर का काम करने वाली 20 साल शिखा कुमारी कहती हैं कि उनके पिता टमाटर उगाते हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते टमाटर का कोई ख़रीदार नहीं मिल रहा है. हम पहले ओखला के व्यापारियों को अपनी सब्ज़ी बेचा करते थे, जो DND के पास छोटे ट्रक लेकर आया करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद उन्होंने भी आना बंद कर दिया है. 

लॉकडाउन के चलते अपनी आजीविका के साधन गंवाने के बाद ये ग़रीब मज़दूर वीरेंद्र सचदेवा और उनकी टीम पर ही निर्भर हैं.