‘सर! दिवाली में नहीं, छठ पूजा में घर जाना चाहता हूं.’ यह बात देश के सभी हिस्सों में रहने वाले बिहारियों की है. चाहे वो पढ़ाई कर रहा हो या पढ़ा रहा हो, साइंटिस्ट हो या फ़िर ठेलेवाला, छठ पूजा में वे घर ज़रुर जाना चाहता है. इसके पीछे धार्मिक मान्यताएं हो सकती हैं, क्योंकि छठ लोक आस्था का महापर्व है. इस पर्व को लेकर बिहारियों में कितनी निष्ठा है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रत्येक वर्ष छठ के अवसर पर दिल्ली, मुंबई समेत देश के तमाम राज्यों से बिहार व यूपी जाने वाली ट्रेनों में ऐसी भीड़ उमड़ती है कि प्रशासन को स्टेशनों पर न सिर्फ़ सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम करने पड़ते हैं, बल्कि इन राज्यों में जाने वाली गाड़ियों के अतिरिक्त कुछ विशेष गाड़ियां भी चलानी पड़ती हैं.
जैसे बंगाल के लिए दुर्गा पूजा, महाराष्ट्र के लिए गणेशोत्सव है, उससे कहीं बढ़कर हमारे लिए छठ पूजा है. हम पूजा और धार्मिक मान्यताओं को किसी पैमाने से नहीं माप रहे, बल्कि कुछ तथ्यों से तौल रहे हैं. बिहार से शुरु हुआ ये पर्व हिन्दुस्तान की पहचान बन चुका है. शुरुआती समय में छठ आधिकारिक रूप से सिर्फ़ बिहार तक सीमित था, पर समय के साथ यह भी ग्लोबल होता गया. आज जहां बिहारी है, वहां छठ है.
इन सबके अलावा छठ पूजा का अपना एक अलग महत्व है, वो है सामाजिक समरसता का भाव. जी हां! बिहार जैसे राज्य में जहां जातिवाद अपनी चरमसीमा पर है, वहां इस त्योहार में इसकी बू तक नज़र नहीं आती. ऐसे ही कुछ मुद्दे को लेकर हम आपको छठ पूजा की विशेषता के बारे में बताने जा रहे हैं.
समाज का मिलन
कहा जाता है कि त्योहार में परिवार के सदस्यों का आपसी मिलन होता है. ये बात पूरी तरह से सच भी है. लेकिन बिहार में छठ पूजा एक ऐसा अवसर होता है, जहां आप अपने समाज से मिल सकते हैं. इस वजह से बिहारी छठ पूजा में घर जाना चाहते हैं.
सम्मान का अहसास
छठ पूजा में प्रसाद के लिए सभी घरों से दूध मांगा जाता है. लोग स्वेच्छा से दान में देते हैं. जिनके घर में छठ पूजा होती है, वे गांव के सभी घरों से दूध इकट्ठा करते हैं. ऐसा शायद ही किसी त्योहार में होता होगा.
जातिवाद पर एक ज़ोररदार तमाचा
छठ पूजा गांव के सभी जाति के लोग करते हैं. जिनके घर में छठ पूजा होती है, समाज के सभी लोग उनके घर प्रसाद खाने जाते हैं. यह अपने आप में जीवंत उदाहरण है.
स्वच्छता की मिसाल
छठ पूजा के दौरान गांव की हरेक गलियों की सफ़ाई होती है. गांव के सभी वर्गों के लोग स्वेच्छा से साफ़ करते हैं. लोग इसे पुण्य का काम समझते हैं.
बंधुत्व की भावना
छठ पूजा के दौरान आपसी दुश्मनी ख़त्म हो जाती है. इस क्रम में लोग आपसी दुश्मनी को भुला कर एक नई शुरुआत करते हैं. प्रसाद के बहाने लोग आपसी प्रेम करते हैं.