चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ (Chief of Defence Staff) जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) का बुधवार को निधन हो गया. तमिलनाडु के कुन्नूर में उनका हेलीकॉप्टर क्रैश कर गया था. जनरल रावत को 31 दिसंबर 2019 को भारत का पहला CDS नियुक्त किया गया था और इसके अगले दिन उन्होंने कार्यभार संभाला.
ये भी पढ़ें: CDS Bipin Rawat: जानिये भारतीय सेना के जनरल बिपिन रावत के नाम दर्ज हैं कौन-कौन सी उपलब्धियां
यानि 2020 के पहले तक CDS का कोई पद नहीं था. ऐसे में बहुत से लोग इसके बारे में जानते भी नही हैं. ऐसे में आज हम आपको चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ पद के बारे में सारी जानकारी देंगे.
CDS होता क्या है और क्यों पड़ी इस पद की ज़रूरत?
चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टॉफ़ एक ‘फ़ोर स्टार जनरल’ होते हैं. इस पद की ज़रूरत साल 1999 में कारगिल युद्ध के बाद महसूस की गई. उस वक़्त ‘कारगिल रिव्यू कमेटी’ ने चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टॉफ़ का पद बनाने का सुझाव दिया, जो तीनों सेनाओं के बीच समन्वय स्थापित कर सके. साथ ही, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को डिफ़ेंस मामलों पर सलाह दे सके. हालांकि, इस पद को हक़ीक़त बनने में क़रीब 20 साल का वक़्त लग गया.
ये भी पढ़ें: MI-17 V5 हेलीकॉप्टर: जानिए IAF के उस विमान की ख़ासियतें, जिसमें सवार थे CDS जनरल बिपिन रावत
CDS का रोल क्या होता है?
CDS का रोल दो तरह का होता है. मतलब है कि वो मिलिट्री और ब्यूरोक्रेसी दोनों से जुड़ा है. एक CDS सैनिक मामलों के विभाग के भी प्रमुख हैं. उनके लिए रक्षा मंत्रालय में एक विभाग बनाया गया है, जिसे डिपार्टमेंट ऑफ़ मिलिट्री अफ़ेयर्स (Department of Military Affairs- DMA) कहते हैं. वो इस विभाग के सचिव के तौर पर काम करते हैं.
सीडीएस परमाणु कमान प्राधिकरण के सैन्य सलाहकार के रूप में भी काम करते हैं. वो रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली Defense Acquisition Council और National Security Advisor की अध्यक्षता वाली रक्षा नियोजन समिति का सदस्य होता हैं.
इसके अलावा, भारतीय सेना के विभन्न अंगों में तालमेल और सैन्य आधुनिकीकरण जैसी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां CDS पर ही होती हैं. वो तीनों सैन्य सेवाओं के प्रशासनिक कार्यों की देख-रेख करते हैं. साथ ही, देश के सभी सुरक्षा एजेंसियों, संगठनों तथा साइबर कार्यों की कमान CDS के हाथों में होती है.
साथ ही, सेना के तीनों अंगों के बीच दीर्घकालिक नियोजन, ट्रेनिंग, ख़रीद और ट्रांसपोर्ट जैसे कार्यों के लिए समन्वयक का काम करते हैं. ताकि इंफ़्रास्ट्र्क्चर का पूरी तरह से इस्तेमाल हो सके. वहीं, फालतू खर्च को कम करना और शस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से तीनों सेनाओं के कामकाज में सुधार लाना भी एक CDS के ही ज़िम्मे होता है.
क्या CDS का पद बहुत ज़्यादा ताकतवर है?
एक लोकतांत्रिक देश में सेना के किसी शख़्स के पास इतना महत्वपूर्ण पद होना, डराने वाली बात तो है. हमारे अड़ोस-पड़ोस देशों का इतिहास सत्ता पलट का रहा है, जो अभी भी जारी है. मगर भारत में ऐसा नहीं हो सकता. CDS का पद पावरफ़ुल तो है, मगर सीमाओं के साथ.
दरअसल, कारगिल रिव्यू कमेटी नेे जब सीडीएस का पद बनाने का सुझाव दिया था, तो उसे ‘फ़ाइव स्टार मिलिट्री ऑफ़िसर’ बनाने की बात कही थी. मगर बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं हुए थे. यही वजह है कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ को फ़ोर स्टार पोज़ीशन बनाई. साथ ही, वो डिफ़ेंस मिनिस्ट्री के नीचे काम करेंगे.
वहीं, CDS सेना के विभन्न अंगों के मामले में रक्षा मंत्री के प्रधान सलाहकार होंगे. वो तीनों सेना प्रमुखों को कोई सीधा कमांड नहीं दे सकते. साथ ही, तीनों सेना प्रमुख रक्षा मंत्री को सलाह देना जारी रखेंगे, जैसा कि अब तक किया गया है. विशेष रूप से उनकी सेवाओं से संबंधित मामलों पर. तीनों सेनाओं के प्रमुख चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमेटी के सदस्य होंगे, जिसकी अध्यक्षता सीडीएस करेंगे.