जहां भारत में कुत्तों को पालतू जानवर के तौर पर देखा जाता है, वहीं चीन में इन्हें स्वादिष्ट व्यंजन समझा जाता है. दरअसल, चीन में कुत्तों का मांस खाने की परम्परा है और इसके लिए हर साल चीन में एक उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों की संख्या में कुत्तों की हत्या की जाती है. इस फ़ेस्टिवल से जुड़ी कुछ अहम लेकिन विचलित करने वाली जानकारी और तस्वीरें आज हम आपको दिखाने जा रहे हैं. अगर आपका दिल कमज़ोर है, तो आप कृपया इन्हें न देखें.
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चीन के एक उत्सव में कुत्तों के साथ ऐसी क्रूरता की जाती है कि किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल पसीज जाए. ये कुत्तों का मीट खाने का उत्सव होता है, जिसमें कुत्तो की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है और उन्हें ज़िन्दा उबाला जाता है. वहां ऐसा माना जाता है कि मरते वक़्त कुत्ता जितना डरा हुआ होता है, उसका मीट उतना ही स्वादिष्ट लगता है.
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इस उत्सव में होने वाली क्रूरता के चलते इसे बैन करने की बात की जा रही थी, पर ये एक बार फिर शुरू हो चुका है. चीन के Nanqiao बाज़ार में एक बार फिर कुत्तों का मीट धड़ल्ले से बेचा जा रहा है.
Animals Asia के Irene Feng ने बताया कि विवादों के कारण इस साल ये फ़ेस्टिवल इतना भव्य नहीं रहा, लेकिन कई जानवरों के मृत शरीर फिर भी अलग-अलग दुकानों पर टंगे मिले. यहां डॉग मीट फ़ेस्टिवल की शुरुआत करीब 10 साल पहले हुई थी. इस वजह से ये शहर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है.
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Humane Society International के आंकड़ों के अनुसार, हर साल चीन में 10 से 20 मिलियन कुत्तों को बेरहमी से मार दिया जाता है. दरअसल, चीन में कुत्तों का मीट खाना ग़ैरकानूनी नहीं है. लेकिन इस फ़ेस्टिवल का विरोध होने के कारण कुत्तों का मीट बेचने वाले ये काम ज़रा छुप कर कर रहे हैं. किसी ने दुकान पर “Dog Meat” की जगह “Tasty Meat” लिख दिया है, तो किसी ने अपनी दुकान के बोर्ड पर कुत्तों की तस्वीर छुपा दी है.forbes
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यह पूरा मामला जानवरों के प्रति क्रूरता को लेकर है. यहां के विक्रेताओं और निवासियों का कहना है कि कुत्तों को मानवीय तरीकों से मारा जाता है और कुत्ते का मांस खाना भी उतना ही क्रूर है, जितना कि सूअर, बीफ़ या मुर्गा खाना.
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हालांकि, आलोचकों का कहना है कि कुत्तों को दूसरे छोटे शहरों से तंग पिजरों में लाया जाता है और इन्हें बड़ी क्रूरता से मारा जाता है. कई एक्टिविस्टों का कहना है कि पालतू कुत्तों की चोरी भी होती है.
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डॉग मीट फ़ेस्टिवल का विरोध करने वालों का यह भी कहना है कि इस आयोजन के लिए कुत्तों को बहुत अमानवीय तरीके से गाड़ियों में भरकर लाया जाता है और उन्हें कई-कई दिनों तक खाने-पीने को कुछ नहीं दिया जाता है.
चीन में कुत्ते का मांस खाने की प्राचीन परंपरा रही है. दक्षिण कोरिया और दूसरे एशियाई देशों के लोग भी कुत्ते का मांस खाते हैं. जो कुत्ते का मांस खाने के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि विदेशी उनके तौर-तरीक़ों में दखल देने वाले कौन होते हैं. यह उनके यहां गर्मियों की परंपरा का हिस्सा है.
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कई बार कुत्तों को खाए जाने से बचाने के लिए कार्यकर्ता उन्हें खरीद लेते हैं. कुत्तों से प्रेम करने वाली यांग जिआयूं उत्तर चीन में स्थित गांव तिआनयिन से यूलिन आईं, जहां उन्होंने करीब 1150 डॉलर खर्च कर के 100 कुत्तों को खरीद लिया, ताकि उन्हें बचाया जा सके.
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सरकार ने भी क्रूरता को रोकने के लिए कुछ नियम बनाये हैं, जैसे व्यापारी कुत्तों को खुलेआम नहीं काट सकते हैं, मृत जानवर प्रदर्शन के लिए नहीं रखने हैं और उनसे तैयार खाना खुले में नहीं परोसना है. लेकिन चीन में कुत्ते का मांस खाने के खिलाफ़ कोई क़ानून नहीं है.
करीब 10 दिनों तक चलने वाले इस फ़ेस्टिवल में हज़ारों की संख्या में कुत्तों को खौलते पानी में डालकर बेरहमी से मार दिया जाता है और फिर उन्हें लोग शौक से खाते हैं.
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एक सर्वे में ये सामने आया है कि चीन के 64 फ़ीसदी लोग इस फ़ेस्टिवल के खिलाफ़ हैं. 1 करोड़ 10 लाख से ज़्यादा लोगों ने इसे बंद कराने के लिए पेटीशन पर साइन भी किया है. सर्वे में 51.7 फ़ीसदी लोगों ने डॉग मीट ट्रेड को हमेशा के लिए बंद करने की मांग की है. 69.5 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने कभी भी डॉग मीट नहीं खाया. सर्वे के मुताबिक, चीन के ज़्यादातर लोग मानते हैं कि इस फ़ेस्टिवल से चीन दुनिया में बदनाम हो रहा है.
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स्थानीय प्रशासन का कहना है कि इस फ़ेस्टिवल का सरकार से कोई लेना देना नहीं है और निजी व्यापारियों के सहयोग से इसका आयोजन किया जाता है. चीन और साउथ कोरिया में कुत्ते का मांस खाने का चलन 500 साल पुराना है, लेकिन यूलिन डॉग फ़ेस्टिवल की शुरुआत हाल के कुछ सालों में ही हुई है.
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इस उत्सव में कुत्तों के साथ क्रूरता की जाती है, इसमें कोई दोराय नहीं है. लेकिन ये भी सोचने वाली बात है कि कुत्तों की ही तरह अन्य जानवरों में भी महसूस करने की क्षमता होती है. अगर ये कुत्तों के लिए दर्दनाक और क्रूर है, तो बाकि जानवरों के लिए भी है. अगर आवाज़ उठाई ही जा रही है, तो हर जीव के लिए उठाई जानी चाहिए.