पेट की भूख न जाने कितने उभरते सपनों को खा जाती है. ग़रीबों की आंखों में काजल नहीं मिलता, मिलती है तो बस राख जो उनके सपनों के जल जाने का सबूत होती है. 12 वीं क्लास का ये बच्चा भी उसी ग़रीबी की राख में अपना भविष्य टटोल रहा है. मेडिसिन की पढ़ाई की चाहत रखने वाला चांद मोहम्मद कोविड-19 से मरने वालों की लाशों को संभालने को मजबूर है ताकि अपने भाई-बहनों की पढ़ाई और मां की दवाई का इंतज़ाम कर सके.   

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चांद मोहम्मद की मां एक थायरॉयड से पीड़ित हैं. उन्हें दवाई की ज़रुरत है लेकिन इलाज के लिए परिवार के पास पैसा नही है.   

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर के रहने वाले चांद ने बताया कि, ‘मेरा बड़ा भाई कृष्णा नगर मार्केट में एक दुक़ान पर काम करता था, लेकिन लॉकडाउन में उसकी नौकरी चली गई, जिसके बाद हम बमुश्क़िल गुज़ारा कर पा रहे हैं.’  

एक हफ़्ते पहले चांद ने एक कंपनी में नौकरी की शुरुआत की, जिसने उसे लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में एक सफ़ाईकर्मी के तौर पर काम में लगाया. इस नौकरी में उसे कोरोना से मरने वालों के शवों को हैंडल करना पड़ता है. वो दोपहर 12 से लेकर रात 8 बजे तक काम करता है.  

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‘जब मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा तो मैंने इस नौकरी को चुना. ये एक ख़तरनाक काम है क्योंकि वायरस से संक्रमित होने का ख़तरा है, लेकिन मुझे नौकरी की ज़रुरत थी.’  

चांद ने बताया कि उसके परिवार में तीन बहनें, दो भाई और माता-पिता हैं. परिवार के पास पैसा नहीं है और मां के इलाज और खाने के हमें पैसे की ज़रुरत है.   

‘कई दिन घर में खाना एक ही बार बना. हो सकता है कि हम वायरस से बच जाएं लेकिन भूख से नहीं बच सकते.’ उसने बताया कि उसकी तीन बहनें स्कूल में हैं, वो ख़ुद 12 वीं में है और अभी फ़ीस जमा करना बाकी है. चांद ने कहा, ‘पैसा चाहिए पढ़ाई के लिए.’ उसे उम्मीद है कि उसकी पहली तनख्वाह से कुछ हद तक मुश्क़िलें कम हो जाएंगी.  

‘मैं काम पर जाने से पहले नमाज़ अदा करता हूं. मुझे अल्लाह पर भरोसा है. वो मेरा ख़्याल रखेगा और मुझे रास्ता दिखाएगा.’  

सबसे ज़्यादा चिंता की बात ये है कि इस तरह के काम करने वाले लोगों को निजी कंपनियों की तरफ़ से कोई इंश्योरेंस नहीं मिलता. महज़ 17 हज़ार रुपये में ये युवा दुनिया का सबसे ख़तरनाक काम करने को मजबूर हैं. हर रोज़ चांद क़रीब दो से तीन शवों को एक अन्य स्वीपर के साथ हैंडल करता है.  

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उसने बताया, ‘हमारा काम शवों को एंबुलेंस में अंदर रखना है. फिर उन्हें श्मशान तक ले जाना और वहां पहुंच कर शवों को नीचे उतारना है. ये सब पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट(पीपीई) पहनकर करना पड़ता है, जो बहुत भारी होती है. उसको पहनकर चलना-फिरना मुश्क़िल होता है साथ ही सांस लेने में भी दिक़्क़त होती है. इतनी गर्मी में आप ख़ुद अपने ही पसीने से नहा जाते हैं.’  

मंगलवार को चांद को अकेले ही एक शव को संभालना पड़ा. जिसने उसे तोड़कर रख दिया.  

‘मैंने एक डॉक्टर को कहते सुना कि एक शव क़रीब एक महीने से शवगृह में पड़ा है, जिसे अबतक कोई लेने नहीं आया. जिस शख़्स ने शव को पैक किया था, उसने अपना काम ढंग से नहीं किया. जब मैं शव को एंबुलेंस से उतार रहा था, तब कवर खुल गया और कुछ लिक्विड मेंरी जांघ पर गिरा.’   

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चांद को पैसे की ज़रुरत है, इसलिए वो कम ब्याज पर लोन लेने की भी कोशिश कर रहा है. चांद के परिवार को उसकी सेफ़्टी की चिंता है, लेकिन उन्हें पता है कि इसके अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं है. चांद ने बताया कि जैसे ही घर पहुंचता है वो तुरंत नहा लेता है, इसके बावजूद वो अपने परिवार से दूरी बनाकर रखता है.