भारत में पहले से मिट्टी के बर्तनों के इस्तेमाल की परंपरा थी, पर अब इनका उपयोग कम होता जा रहा है. किचन में केवल धातु और प्लास्टिक के बर्तन दिखाई देते हैं और मिट्टी के बर्तन लुप्त से हो गए हैं. गांवों में फिर भी लोग इनका इस्तेमाल कर लेते हैं, लेकिन शहरी घरों में अब इनकी जगह नहीं रही है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/03/58d11199f89ec136d666d590_8808a723-3660-404f-b3a9-975c4b82f3b5.jpg)
World Bank की एक स्टोरी के अनुसार, भारत को ग्रीन ग्रोथ रणनीति अपनानी चाहिए, जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. प्लास्टिक से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. इसके विकल्प के तौर पर यदि मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाए, तो इस नुकसान को बहुत हद तक कम किया जा सकता है.
मिट्टी के बर्तन आसानी से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना नष्ट हो जाते हैं, जिससे कचरा नहीं बढ़ता. अब आलम ये है कि कुम्हारों को अपना खर्चा निकालने के लिए अन्य काम करने पड़ रहे हैं, क्योंकि मिट्टी के बर्तनों की मांग में भारी गिरावट आई है.
बिहार के एक कुम्हार ने बताया कि उसे पहले लाखों कुल्हड़ों के ऑर्डर मिला करते थे, पर अब ऐसा नहीं होता. वहीं कोलकाता के एक कुम्हार को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना काम छोड़ कर ड्राइवर की नौकरी करनी पड़ी.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/03/58d11199f89ec136d666d590_82ac6eb6-c04d-4ade-bd98-7b41281ddea9.jpg)
इस काम के लिए काफ़ी मेहनत और कार्यकुशलता चाहिए होती है, पर आजकल कुम्हारों को इसके बदले उतने पैसे नहीं मिल पा रहे हैं. इस स्थिति को बदलने के लिए अब सरकार भी प्रयास कर रही है.
2004 में तत्कालीन रेल मंत्री, लालू प्रसाद यादव ने डिस्पोज़ेबल कप्स की जगह कुल्हड़ों का उपयोग रेलवे में अनिवार्य कर दिया था, जिससे कुम्हारों को रोज़गार मिलने लगा था. लेकिन ये प्लान उतना सफ़ल नहीं हो पाया और कुम्हारों की स्थिति फिर वैसी ही हो गयी.
मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करने के कई स्वास्थ्य सम्बंधित फ़ायदे भी हैं, इसके बावजूद ये इंडस्ट्री डूबती नज़र आ रही है. इसे पुनार्जीवित करने के सरकार के सारे प्रयास भी अब तक विफल रहे हैं.
प्लास्टिक की जिन चीज़ों को हम डिस्पोज़ेबल कह कर इस्तेमाल करते हैं, दरअसल वो कभी डिस्पोज़ नहीं होतीं. वो कचरे के रूप में पर्यावरण को दूषित करती रहती हैं. एक बार बनायी गयी प्लास्टिक हमेशा-हमेशा के लिए पृथ्वी पर रहती है. ज़रा सोचिये, अब तक कितनी प्लास्टिक हम पृथ्वी पर जमा कर चुके हैं, जो हमेशा यहीं रहने वाली है?
Feature Image: Keepingitpersonal