जब क्लास में कॉपी चेक होनी होती थी तो समय बहुत देरी से चलने लगता था. घड़ी की सुइयों पर ही ध्यान रहता था अकसर. मन करता था कि इस सुई को एक रस्सी से अपने कंधों से बांध लूं और फिर बहुत तेज़ी से दौड़ूं. इस दौड़ से शायद सुई भी तेज़ हो जाये. यह तो मेरे अतीत की जेब से निकली यादें हैं. हरेक के पास समय को लेकर अलग-अलग तरह की यादें होती हैं. पर हमेशा आपने यह देखा होगा कि घड़ी की सुई एक ही दिशा की ओर दौड़ती है, यानि समय एक ही दिशा की ओर बढ़ता है. इसके पीछे भी कुछ कारण हैं और यहां उन्हीं कारणों की बात होने जा रही है.

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हमारे पूर्वजों के समय में एक ही घड़ी थी, सूर्य. वैसे वो परछाईं के सहारे समय का अंदाज़ा लगाया करते थे. मिस्त्र के लोगों ने परछाईं के जरिए समय का पता लगाने का तरीका ईजाद किया था. लेकिन ग्रीक लोगों ने परछाईं से पहले भी एक रॉड के साथ समय का पता लगाने की शुरुआत की थी. वो सतह पर उस मेटल को रखते एवं उसकी परछाईं के सहारे समय का पता लगाते.

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प्राचीन समय में जो लोग उत्तरी गोलार्ध में रहते थे, उन्होंने ही Clockwise System बनाया था लेकिन उन लोगों को अपने सनडॉयल में खड़े होने पर उत्तरी गोलार्ध से सूर्य पश्चिम से पूर्व की ओर जाता प्रतीत होता था. परंतु ऐसा नहीं था, उत्तरी गोलार्ध के लोगों ने ही परछाईं के साथ समय देखने की शुरुआत की थी. तब से Clockwise System पश्चिम से पूर्व की ओर चल रहा है.

अगर दक्षिणी गोलार्ध में रह रहे लोग इसको लेकर पहल करते तो शायद वो पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाला Clockwise System ईजाद करते. तो शायद आज हमारी घड़ियां भी दूसरी दिशा की ओर दौड़ रही होतीं. क्योंकि दक्षिणी गोलार्ध के आसमान का सूर्य पश्चिम से पूर्व की दिशा की ओर बढ़ता दिखता है और उत्तरी गोलार्ध से पश्चिम से पूर्व दिशा में.

अब समझ आया भाई? दुनिया बड़ी गोल है.