वक़्त- प्राइम टाइम
चैनल- News18 India
एंकर- अमिश देवगन
डिबेट का विषय- मॉब लिंचिंग (रकबर हत्याकांड)
सब सामान्य चल रहा था. चिल्लम-चिल्ली ज़ोरों पर थी. सब अपना पल्ला झाड़ने और दूसरे पर आरोप लगाने में मस्त थे.
तभी तैश में आकर पैनेल मेंमबर, कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी ने न्यूज़ एंकर को अपशब्द कह दिए.
अमिश ने प्रवक्ता को अपने शब्द वापस लेने के का मौका दिया लेकिन राजीव त्यागी अपनी बात पर अड़े रहे और ये तक कहा कि,
अमिश मानवता और देश प्रेम, किसानों पर डिबेट नहीं करते. तुम नफ़रत फैलाते हो.
पैनेल मेंमबर संबित पात्रा (बीजेपी प्रवक्ता) और अजय गौतम (हम हिन्दू के संस्थापक) और तसलीम रहमानी (मुस्लिम चिंतक) ने राजीव त्यागी के अपशब्दों की निंदा की.
अमिश ने दोबारा राजीव त्यागी को शब्द वापस लेने का मौका दिया, लेकिन राजीव का जवाब कुछ यूं था,
जो आप कर रहे हो उसके लिए देश माफ़ नहीं करेगा, इतिहास माफ़ नहीं करेगा.
जवाब में राजीव त्यागी एक कविता जैसा कुछ पढ़ने लगे. लेकिन अमिश को अपशब्द कहने के लिए माफ़ी नहीं मांगी.
राजीव त्यागी तो यहां तक बोल गए कि अमिश सही डिबेट करवा ही नहीं सकते…
अमिश बार-बार राजीव को माफ़ी मांगने का मौका देते रहे और अपने शब्द पर कोई ख़ेद नहीं, ऐसा कहा. और ये भी कहा कि वो दोबारा अपशब्द कहेंगे.
ट्विटर पर कई नेता और आम लोगों ने इस वाकये की कड़ी आलोचना की है-
कोंग्रेस के प्रवक्ता द्वारा अभद्र भाषा का प्रयोग एक ही प्रश्न पूछने को मजबूर करता है —
क्या यह है @RahulGandhi जी का राजनीति में ‘प्रेम’ एवं संस्कार का परिचय? #HugOfHypocrisy https://t.co/70rGxDieaH— Smriti Z Irani (@smritiirani) July 26, 2018
Disgusting. I am finding it increasingly difficult to take part in such ‘debates’ https://t.co/sJKoxyA6GH
— Smita Prakash (@smitaprakash) July 26, 2018
Shame on congress spokesperson…
Disgusting behavior.. @AMISHDEVGAN More power to you— Arjuna (@MordenHindu) July 25, 2018
इससे पहले भी अमिश देवगन के पैनेल पर मौलाना बरकती ने अभद्र भाषा का प्रयोग किया था-
अमिश के ही डिबेट में पैनल मेंमबर आपस में भिड़ गए थे-
Mirror Now की एंकर Faye D’Souza को डिबेट के दौरान एक मौलाना जी ने Underwear में दफ़्तर आने तक की बात कह दी थी-
न्यूज़ एंकर को डिबेट के दौरान अपशब्द कहना जैसे नेताओं का शौक हो गया है. दुख की बात ये है कि ख़ेद जताने के अलावा हम कुछ नहीं कर पाते
सवाल ये है कि इतने बड़े पद पर पहुंचकर नेतागण अपनी भाषा पर लगाम क्यों नहीं लगाते? अगर किसी को डिबेट से आपत्ति है, तो वो वहां जाता ही क्यों है.
ये किस तरह का उदाहरण पेश किया जा रहा है? जब नेता ही मर्यादा का उल्लंघन कुछ इस तरह करेंगे, तो जनता तो यही समझेगी न कि किसी को कुछ भी बोल दो, यहां कुछ नहीं होता.
पत्रकार और नेता, दोनों ही लोकतंत्र के मज़बूत स्तंभ हैं. एक पर देश को चलाने का भार और दूसरे पर उसे सही दिशा देने का. हम दोनों से ही इस तरह के व्यवहार और बचपने की उम्मीद नहीं रखते.