वक़्त- प्राइम टाइम

चैनल- News18 India

एंकर- अमिश देवगन

डिबेट का विषय- मॉब लिंचिंग (रकबर हत्याकांड)

सब सामान्य चल रहा था. चिल्लम-चिल्ली ज़ोरों पर थी. सब अपना पल्ला झाड़ने और दूसरे पर आरोप लगाने में मस्त थे.

तभी तैश में आकर पैनेल मेंमबर, कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी ने न्यूज़ एंकर को अपशब्द कह दिए.

अमिश ने प्रवक्ता को अपने शब्द वापस लेने के का मौका दिया लेकिन राजीव त्यागी अपनी बात पर अड़े रहे और ये तक कहा कि,

अमिश मानवता और देश प्रेम, किसानों पर डिबेट नहीं करते. तुम नफ़रत फैलाते हो.

पैनेल मेंमबर संबित पात्रा (बीजेपी प्रवक्ता) और अजय गौतम (हम हिन्दू के संस्थापक) और तसलीम रहमानी (मुस्लिम चिंतक) ने राजीव त्यागी के अपशब्दों की निंदा की.

अमिश ने दोबारा राजीव त्यागी को शब्द वापस लेने का मौका दिया, लेकिन राजीव का जवाब कुछ यूं था,

जो आप कर रहे हो उसके लिए देश माफ़ नहीं करेगा, इतिहास माफ़ नहीं करेगा.

जवाब में राजीव त्यागी एक कविता जैसा कुछ पढ़ने लगे. लेकिन अमिश को अपशब्द कहने के लिए माफ़ी नहीं मांगी.

राजीव त्यागी तो यहां तक बोल गए कि अमिश सही डिबेट करवा ही नहीं सकते…

अमिश बार-बार राजीव को माफ़ी मांगने का मौका देते रहे और अपने शब्द पर कोई ख़ेद नहीं, ऐसा कहा. और ये भी कहा कि वो दोबारा अपशब्द कहेंगे.

https://www.youtube.com/watch?v=Ff8DqDiOgrM

ट्विटर पर कई नेता और आम लोगों ने इस वाकये की कड़ी आलोचना की है-

https://www.youtube.com/watch?v=yQjWS5jR4z4

इससे पहले भी अमिश देवगन के पैनेल पर मौलाना बरकती ने अभद्र भाषा का प्रयोग किया था-

अमिश के ही डिबेट में पैनल मेंमबर आपस में भिड़ गए थे-

https://www.youtube.com/watch?v=rRK3NVwEwpY

Mirror Now की एंकर Faye D’Souza को डिबेट के दौरान एक मौलाना जी ने Underwear में दफ़्तर आने तक की बात कह दी थी-

https://www.youtube.com/watch?v=IVt6gW6N3bY

न्यूज़ एंकर को डिबेट के दौरान अपशब्द कहना जैसे नेताओं का शौक हो गया है. दुख की बात ये है कि ख़ेद जताने के अलावा हम कुछ नहीं कर पाते

सवाल ये है कि इतने बड़े पद पर पहुंचकर नेतागण अपनी भाषा पर लगाम क्यों नहीं लगाते? अगर किसी को डिबेट से आपत्ति है, तो वो वहां जाता ही क्यों है.

ये किस तरह का उदाहरण पेश किया जा रहा है? जब नेता ही मर्यादा का उल्लंघन कुछ इस तरह करेंगे, तो जनता तो यही समझेगी न कि किसी को कुछ भी बोल दो, यहां कुछ नहीं होता.

पत्रकार और नेता, दोनों ही लोकतंत्र के मज़बूत स्तंभ हैं. एक पर देश को चलाने का भार और दूसरे पर उसे सही दिशा देने का. हम दोनों से ही इस तरह के व्यवहार और बचपने की उम्मीद नहीं रखते.