भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है. 396 लोग अभी तक इसकी चपेट में आ चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमारा स्वास्थ्य विभाग इस महामारी से निपटने के लिए तैयार है? सरकार भले ही कुछ भी दावे कर रही हो, मगर आंकड़े तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में 84000 लोगों पर एक आसोलेटेड बेड उपलब्ध है. यही नहीं Quarantine बेड की संख्या 36000 लोगों पर एक है. डॉक्टर्स की बात करें तो 11,600 नागरिकों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है.

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रही बात अस्पतालों में बेड की तो 1,826 लोगों पर एक बेड उपलब्ध है. ये आंकड़े बताते हैं कि कोरोना जैसी महामारी से 135 करोड़ लोगों को बचा के रखना आसान नहीं. इसलिए बहुत ज़रूरी है कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग वाली बात को सीरियसली लें. 

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इसकी मदद से ही हम ख़ुद को कोरोना वायरस से बचाने की कोशिश कर सकते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विषेशज्ञों का कहना है कि शायद इन्हीं आंकड़ों को देखते हुए पीएम मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू में लोगों से हिस्सा लेने की अपील की थी. सोशल डिस्टेंसिंग के ज़रिये ही संक्रमण की दर को कम किया जा सकता है. इससे स्वास्थ्य विभाग पर भी कम दबाव पड़ेगा. 

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ICMR-Institute Of Genomics And Integrative Biology के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने इस बारे में बात करते हुए कहा- ‘हम ट्रांसमिशन के स्टेज 2 में हैं, और इस स्तर पर सोशल डिस्टेंसिंग बहुत प्रभावी है. स्टेज 3 में लॉकडाउन की ज़रूरत होती है.’ 

उनका मानना है कि संक्रमण को रोकने में सोशल डिस्टेंसिंग बहुत ज़रूरी है. इसलिए लोगों को सरकार की बात मान कर घरों में ही रहना चाहिए. सरकार सही कदम उठा रही है. 

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साल 2019 में जारी किए स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, देश में 1,154,686 पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टर हैं और सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध बेड्स की संख्या 7,39,024 है. कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए हमें प्राइवेट सेक्टर की भी ज़रूरत पड़ेगी. मगर समस्या ये है कि अभी तक प्राइवेट सेक्टर को सरकार ने अपने प्लान में शामिल नहीं किया है. 


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