विश्व में कोरोना वारयस से संक्रमित लोगों की संख्या 13 लाख से अधिक हो गई है. इसके चलते दुनिया के कई देश लॉकडाउन हैं. जिन देशों में लॉकडाउन का पालन हो रहा है वहां पर अप्रत्याशित रूप से कार्बन उत्सर्जन में कमी देखने को मिली है. इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन के कारण वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में होने वाली कमी को लेकर एक अनुमान लगाया है. उनका मानना है कि इस वर्ष कार्बन उत्सर्जन में दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की जा सकती है.

दरअसल, लॉकडाउन के चलते दुनियाभर की औद्योगिक और मानवीय गतिविधियां कम हो गई हैं, जिनसे सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन होता था. इसका फ़ायदा पर्यावरण को हो रहा है. इसलिए अधिकतर देशों की हवा पहले से कहीं अधिक साफ़ और शुद्ध हो गई है.

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कैलिफ़ोर्निया की Stanford University के प्रोफ़ेसर Jackson ने इस बारे में बात करते हुए कहा- ‘इस साल वैश्विक स्तर पर कार्बन के उत्सर्जन में 5 प्रतिशत तक की कमी आ जाए तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा. 2008 के वित्तीय संकट के दौरान कार्बन उत्सर्जन में पहली बार कमी देखी गई थी. उस वक़्त ये 1.4 फ़ीसदी थी.’ 

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उनका अनुमान है कि अगर ऐसा होता है तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद कार्बन उत्सर्जन में आई ये अब तक की सबसे बड़ी गिरावट होगी. उन्होंने ये भी बताया कि कार्बन डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन की मात्रा में इतनी बड़ी गिरावट की वजह एक छोटा सा वायरस है. इससे पहले कई बड़े संकट आए जैसे सोवियत संघ का विघटन, तेल संकट या फिर अन्य वित्तीय संकट. मगर किसी भी संकट के समय पर कार्बन उत्सर्जन में इतनी अधिक कमी नहीं दर्ज की गई थी.

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हालांकि, इंग्लैंड की University Of East Anglia के वैज्ञानिक Corinne Le Quéré का कहना है कि ये बस कुछ ही समय के लिए है. जैसे ही ये महामारी ख़त्म होगी और पूरी दुनिया अपनी पहले की स्थिति में पहुंच जाएगी तब कार्बन उत्सर्जन फिर बढ़ जाएगा. 2021 में ये पहले वाली जगह पर ही पहुंच जाएगा. 

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