नैनीताल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसला लेते हुए गंगा और यमुना नदी को ‘ज़िंदा’ घोषित कर दिया है. कोर्ट ने गंगा और यमुना नदी को जीवित मानते हुए हुए केंद्र सरकार को इन्हें इंसानों की तरह अधिकार देने के निर्देश दिए हैं. इस फैसले से अब प्रदूषित गंगा और यमुना को साफ़ बनाने के प्रयासों को गति मिलने के आसार हैं.

कोर्ट ने इसके अलावा गंगा नदी से निकलने वाली नहरों आदि संपत्ति का बंटवारा आठ सप्ताह में करने के आदेश भी दिए. कोर्ट ने देहरादून के डीएम को 72 घंटे के भीतर शक्ति नहर ढकरानी को अतिक्रमण मुक्त करने के सख़्त निर्देश दिए हैं.

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उत्तराखंड निवासी मोहम्मद सलीम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला दिया. याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को गंगा और सहायक नदियों से जुड़ी संपत्तियों के बंटवारे को विवाद को सुलझाने के आदेश दिए हैं. इस मामले में केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी कोर्ट के सामने पेश हुए और उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए उठाए कदमों की जानकारी भी दी, मगर कोर्ट सरकारों के रुख से बेहद नाराज़ नज़र आई.

गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है. देश के कई पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुए हैं जिनमें वाराणसी और हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं. इससे पहले न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप पर स्थित वाननुई नदी को भी कानूनी तौर पर जीवित मान लिया गया था. जिसके बाद इस नदी को भी एक ज़िंदा व्यक्ति की तरह ही कानूनी अधिकार दिए गए हैं.

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वाननुई नदी भी न्यूज़ीलैंड की तीसरी सबसे लंबी नदी है. ये नदी न्यूज़ीलैंड के माओरी जनजाति के लोगों के लिए काफ़ी अहमियत रखती है. 1870 के दशक से ही माओरी जनजाति के लोग वाननुई नदी के साथ अपने अनूठे संबंधों को पहचान और स्वीकृति दिए जाने की कोशिश कर रहे हैं.

माओरी जनजाति के लोगों की नदी के प्रति आस्था को देखते हुए ही न्यूज़ीलैंड की सांसद ने वाननुई को जीवित व्यक्ति के समान अधिकार दिए थे.

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