असफ़लता को मजबूरी साबित करने के लिए लोग सौ कारण बताते हैं. लेकिन सफ़लता का कारण बस एक होता है. संघर्ष. लाइफ़ में लगातार संघर्ष बना रहता है. जो अंत तक टिका रहता है, उसके लिए मंज़िलें रास्ते के पेड़ों में तब्दील हो जाती हैं. वो ही पेड़ जो गाड़ी से चलते समय पीछे छूटते मालूम पड़ते हैं. झारखंड की रहने वाली मूमल राजपुरोहित की संघर्ष की दास्तां भी कुछ ऐसी ही है.
जमशेदपुर के मुख्य वन संरक्षक जब्बार सिंह की बेटी मूमल राजपुरोहित को यूपीएससी क्रैक करने से COVID-19, चिकन पॉक्स और सड़क दुर्घटना तक रोक नहीं पाई. उन्होंने इस साल अपने चौथे प्रयास में यूपीएससी में 173 वीं रैंक हासिल की है.
दरअसल, यूपीएससी के प्री एग्ज़ाम से पहले उन्हें चिकनपॉक्स हो गया था. मेन्स से पहले उनका एक रोड एक्सीडेंट हो गया और जब उनका इंटरव्यू था, उसके पहले वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई. लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने तैयारी जारी रखी और यूपीएससी में 173 वीं हासिल की.
Hindustan Times से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी प्रारंभिक परीक्षा से 21 दिन पहले चिकनपॉक्स से संक्रमित हो गई, मेन्स से एक दिन पहले एक सड़क दुर्घटना का शिक़ार हुई और इंटरव्यू से दो महीने पहले दिल्ली में मेरी COVID-19 की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई. समय प्रबंधन सिविल सेवा परीक्षा को क्रैक करने की कुंजी है.’
मूमल राजपुरोहित की कहानी हर उस शख़्स के लिए एक मिसाल है, जो मुसीबतों से लड़ने के बजाय उनके आगे घुटने टेक देते हैं. बड़ी बात ये नहीं है कि उन्होंने यूपीएससी का एक एग्ज़ाम पास किया है, बड़ी बात ये है कि उन्होंने ज़िंदगी के एग्ज़ाम में फ़ेल होने से इनकार कर दिया. सच में, असफ़लता कमज़ोर बहानों से और सफ़लता मजबूत इरादों से मिलती है.
वहीं, इस बीच जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम) जिले के धालभूमगढ़ ब्लॉक में कंसा पंचायत के कंस मुखिया पूर्ण चंद्र सिंह के बेटे शांतनु कुमार सिंह भी यूपीएससी एग्ज़ाम में सफ़लता हुए हैं. उन्होंने 654वीं रैंक हासिल की है.