‘जाको राखे साईयां, मार सके न कोई’ ये कहावत नोएडा की एक महिला पर फ़िट बैठती है. दरअसल, 24 अप्रैल को नोएडा के एक परिवार ने अपनी गुमशुदा बेटी की लाश मिलने के बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया था. लेकिन इस कहानी में ट्विस्ट तब आया जब बीते बुधवार को उनकी ये मरी हुई बेटी अचानक सकुशल घर वापस लौट आयी. बेटी को ज़िंदा देख घर वाले जितना ख़ुश थे, उतना ही हैरान भी. परिवार वाले ये सोचकर हैरान थे कि अगर उनकी बेटी ज़िंदा है, तो फिर जिसका उन्होंने अंतिम संस्कार किया वो कौन थी?

दरअसल, नोएडा निवासी सर्वेश सक्सेना और उनकी पत्नी ने पिछले महीने पुलिस को अपनी 25 साल की शादीशुदा बेटी नीतू के गुम होने की सूचना दी. इस बीच पुलिस ने नीतू को हर जगह ढूंढने के कोशिश की. लेकिन नीतू का कहीं भी पता नहीं चला. परिजनों का आरोप था कि नीतू को उसके पति रामलखन ने मार डाला है. जांच के लिए पुलिस ने पति और ससुर को गिरफ़्तार कर उससे पूछताछ की. लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा. इस दौरान पुलिस को सूचना मिली कि नोएडा के सेक्टर-115 में एक महिला की अधजली लाश पड़ी हुई है.

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इस पर पुलिस ने तुरंत सक्सेना परिवार को सूचित कर मृत महिला की बॉडी पहचानने के लिए बुलाया. इस परिवार ने हाथ-पैर, बाल और मंगलसूत्र के आधार पर मृत बॉडी की पहचान अपनी बेटी नीतू के रूप में की. पुलिस ने पोस्टमॉर्टम के बाद परिवार को बॉडी सौंप दी. 24 अप्रैल को परिवार ने इसे नीतू की बॉडी समझकर उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया.

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पुलिस के मुताबिक नीतू पति से अलग होने के बाद अकेले रह रही थी. लेकिन दो पहले नीतू परिवार वालों के साथ झगड़ा करके चुपके से पूरन नाम के एक व्यक्ति के साथ यूपी के ऐटा चली गयी. इस दौरान पुलिस की गिरफ़्त में आये पूरन ने बताया कि नीतू उसके साथ ही रह रही थी.

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नीतू तो सकुशल घर वापस लौट आयी है, लेकिन पुलिस की करवाई पर सवालिया निशान उठता है कि परिजनों की मामूली पहचान के आधार पर बॉडी उन्हें कैसे सौंप दी गई? पुलिस ने लाश की फ़िंगरप्रिंट या फिर डीएनए जैसी जांच क्यों नहीं की?  

Source: indiatoday

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