हालात कितने भी मुश्क़िल क्यों न हों पर जज़्बात के आगे घुटने टेक देते हैं. जज़्बात, जो उन रिश्तों से पैदा होते हैं, जिन्हें शब्दों के दायरे में लाना और बयां करना नामुमुक़िन है. एक रिश्ता आरिफ़ ने निभाया, जो भावनाओं की डोर में बंधा है. एक रिश्ता CRPF ने निभाया, जो इंसानियत और फ़र्ज़ के सांचे में ढला है.   

जम्मू के राजौरी इलाके के पंजगराइयां गांव से ताल्लुक रखने वाला 36 साल का मोहम्मद आरिफ़ मुंबई में एक वॉचमैन के तौर पर काम करता है. 1 अप्रैल को उसे पता चला कि उसके पिता को स्ट्रोक आ गया है. आरिफ़ इस बात से वाक़िफ़ था कि लॉकडाउन के चलते ट्रांसपोर्ट बंद है. ऐसे में उसने साइकिल से ही मुंबई से राजौरी में स्थित अपने गांव पहुंचने का तय किया. आरिफ़ ने एक साइकिल उधार ली और 2100 किमी के लंबे सफ़र पर निकल पड़ा. 

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आरिफ़ ने बताया, ‘मेरे पास कोई प्लान नहीं था और मुश्क़िल से ही कुछ पैसा था.’ 

indianexpress की रिपोर्ट के मुताबिक़, 60 साल के आरिफ के पिता वज़ीर हुसैन को स्ट्रोक के तुरंत बाद स्थानीय जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल ज़्यादा अच्छा नहीं था तो, उन्हें वापस घर भेज दिया गया. ऐसे में हुसैन के रिश्तेदारों ने COVID-19 और लॉकडाउन के मुद्दों को हल करने के लिए समर्पित क्षेत्रीय CRPF की हेल्पलाइन ‘मददगार’ से मदद मांगी. 

चंडीगढ़ में CRPF की 51वीं बटालियन के कमांडेंट निसार मोहम्मद ने कहा, ‘उनके पिता का ठीक से इलाज हो सके इसलिए हमने हस्तक्षेप किया.’ 

हुसैन की स्थिति के बारे में जानने के बाद, CRPF के अधिकारियों ने उन्हें हेलीकॉप्टर से राजौरी से जम्मू के लिए रवाना किया, जहां से वे उन्हें सड़क मार्ग से चंडीगढ़ ले गए. 

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इसी दौरान आरिफ़ मुंबई से साइकिल चलाना शुरू कर चुके थे. रास्ते में, उन्होंने एक वीडियो शूट किया जिसमें उन्होंने अपने पिता की बीमारी और अपने सफ़र के बारे में बताया. ये वीडियो वायरल हो गया और सीआरपीएफ का भी ध्यान इस वीडियो पर गया. 

आरिफ़ तीन दिनों तक साइकिल चलाकर किसी तरह वडोदरा पहुंचा, जहां स्थानीय सीआरपीएफ़ यूनिट ने उनसे मुलाकात की और रहने की जगह दी. आरिफ़ ने बताया, ‘उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे पिता को चंडीगढ़ में शिफ्ट कर दिया गया है, उनका सबसे अच्छा इलाज किया जा रहा है. अब मैं वहां जाने के बजाय यहीं रह जाऊं लेकिन मैं फिर भी अपने पिता को देखना चाहता था.’ 

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जब आरिफ़ नहीं माना तो फिर सीआरपीएफ़ ने उसके पिता और उसे मिलाने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. चंडीगढ़ से सीआरपीएफ के कमांडेंट मोहम्मद ने कहा, ‘वडोदरा से, स्थानीय यूनिट ने आरिफ़ को अहमदाबाद में उतार दिया, और वहां से एक दूसरी यूनिट ने उसे लुधियाना पहुंचाया.’ 

आख़िरकार आरिफ़ के जज़्बात और सीआरपीएफ़ की मेहनत रंग लाई. आरिफ़ अपने पिता के पास है. अपने पिता के पास होकर वो ख़ुश है लेकिन अभी उसके पिता बात नहीं कर पा रहे, इसलिए उदास भी. उम्मीद है कि उसके पिता जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे.