लॉकडाउन ने ग़रीब और मज़दूर लोगों की क्या हालत की है इसका अंदाज़ा तो सही-सही बस मज़दूर ही लगा सकते हैं. ऐसे मज़दूर जो रोज़ी-रोटी कि तलाश में शहर गए और लॉकडाउन में बेरोज़गार होने के बाद घर को लौटने को मजबूर हैं. कोई पैदल, कोई रिक्शे में तो कोई चोरी-छिपे किसी ठेले मतलब ट्रक में.

ऐसे ही एक मज़दूर हैं लखनलाल, जो रिक्शे पर अपने परिवार को लेकर 800 किलोमीटर का सफ़र तय कर मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले पहुंचे हैं. लखनलाल पंजाब में एक शीशे बनाने वाली फ़ैक्टरी में मज़दूरी करते थे. वो यूपी के बांदा ज़िले के सिमरिया गांव के रहने वाले हैं. पंजाब से उनका घर क़रीब 1200 किलोमीटर दूर है. उन्हें अभी 400 किलोमीटर का सफ़र और तय करना है.

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लखनलाल अपने गांव से पंजाब रोज़गार की तलाश में आए थे. लॉकडाउन शुरू होने के बाद काम भी नहीं बचा और सिर छुपाने के लिए जो किराए पर कमरा लिया था उसे भी मकान मालिक ने खाली करवा लिया. मजबूरन उन्हें अपने परिवार के साथ गांव लौटने का फ़ैसला लेना पड़ा. सफ़र थोड़ा आसान हो इसके लिए उन्होंने किसी तरह अपने साथी मज़दूरों से एक साइकिल रिक्शे का इंतज़ाम किया.

इस रिक्शे पर वो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों और बीवी के साथ घर की ओर निकल पड़ा. उनके पास खाने के नाम पर बस पानी था और चिलचिलाती धूप से बचने के लिए रिक्शे में बैठा उनका परिवार चादर ओढ़ता था. ऐसा नहीं है कि उन्होंने सरकार से मदद की गुहार नहीं लगाई. उन्होंने यूपी सरकार द्वारा जारी किए गए तमाम हेल्पलाइन नंबर्स पर कॉल किया. मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ.

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इसलिए वो लगातार एक सप्ताह तक रिक्शा चलाने के बाद मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले पहुंचे. बीच रास्ते में वो कई जगह रुके जहां उन्हें कुछ लोगों ने खाने-पीने की वस्तुएं दीं. मगर आधे से ज़्यादा रास्ते उनका परिवार सिर्फ़ पानी पीकर ही आगे बढ़ता रहा. अभी उन्हें क़रीब 400 किलोमीटर का और सफ़र करना है. 

लखनलाल ने ये भी बताया कि बीच रास्ते में एक बार हरियाणा पुलिस ने उन्हें ग़लत रास्ता बता दिया था. इसके कारण उन्हें काफ़ी परेशानी हुई थी. उनके लिए अभी तक किसी राज्य सरकार ने कोई मदद की पेशकश नहीं की है. लखनलाल का कहना है कि वो ऐसे ही चलते रहेंगे जब तक वो अपने घर न पहुंच जाएं. 

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