देश में दलित शब्द एक च्यवनप्राश की तरह है जिसे हर राजनीतिक पार्टी सत्ता पाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं. 2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में दलितों की कुल आबादी 25 प्रतिशत है. इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद भी यह समुदाय राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से काफ़ी पिछड़ा हुआ है. ऐसे में सवाल उठता है कि आज़ादी के 68 साल बाद भी इनकी स्थिति इतनी बुरी क्यों रही? आख़िर ये दलित होते कौन हैं? दिखने में कैसे होते हैं? क्या ये भारत के ही नागरिक हैं? आइए इन्हीं बातों को गहराई से समझते हैं.

दलित कौन होते हैं?

दलित शब्द संस्कृत शब्द के दल् से आई है, जिसका मतलब होता है पीसा गया, कुचला गया और दबाया गया. निम्न श्रेणी के काम करने वालों को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है.

कैसे हुए दलित?

प्राचीन ग्रंथों में लिखित वर्ण व्यवस्था के अनुसार दलितों को परिभाषित किया गया है. जिसमें मानव समाज को उनके काम और उपयोगिता के अनुसार 4 वर्गों में बांटा गया है.

1. ब्राह्मण-ब्राह्मण को बुद्धिजीवी माना जाता है, जो अपनी विद्या, ज्ञान और विचार शक्ति द्वारा जनता एवं समाज का नेतृत्व कर उन्हें सन्मार्ग पर चलने का आदेश देता है.

2. क्षत्रिय-क्षत्रिय वह हैं जिनके पास सत्ता होती थी. वे अपनी प्रजा की रक्षा के लिए लिए सदैव वचनबद्ध रहते हैं.

3. वैश्य- इस वर्ण का मुख्य काम व्यापार करना था.

4. शूद्र- प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस वर्ण के लोगों का मुख्य काम सेवा करना था.

दलितों के काम

दलितों का मुख्य काम मानव मल, सड़क, गंदे नाले की गंदगी को साफ़ करना था.

कैसे हुए दलित?

मुगल काल में हिन्दुओं को दो विकल्प दिए गए थे. या तो मुसलमान बन जाओ या फ़िर उनकी गंदगी साफ़ करो. कई लोगों ने तो धर्म परिवर्तन कर लिया और कई लोग ऐसे थे जिन्होंने नीच काम करना शुरू कर दिया. बाद में इन लोगों को दलित कहा गया.

दलितों का इतिहास

दलितों के कार्यों की वजह से अन्य वर्ण के लोग इनसे घृणा करते थे. स्थिति ऐसी होती थी कि इन्हें मंदिरों और सार्वजनिक जगहों में जाने से भी रोका जाता था. वर्तमान में भारत के कई हिस्सों में ऐसा हो रहा है.

दलितों का उत्थान

दलितों के उत्थान के लिए कई समाज सुधारक हुए जिन्होंने देश के सभी क्षेत्रों में जाकर छुआछूत के ख़िलाफ जाकर आंदोलन किया. और यह प्रक्रिया अब तक जारी है.

दलित चिंतक और आंदोलन

वैसे तो भक्तिकाल में कई ऐसे संत हुए जिन्होंने आम लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया. अंग्रेजी शासन काल में कई ऐसे समाज सेवक हुए जिन्होंने आंदोलन कर दलितों के उत्थान के लिए काम किया जिनमें राजाराम मोहन राय प्रमुख थे.

20 वीं शताब्दी मे दलित आंदोलन

20 वीं शताब्दी के प्रारम्‍भ में दलित आंदोलन कि शुरूआत हिन्दुओ के भीतर ही हुई, जिसमे छुआछुत, मंदिरो मे जाना आदि समस्याओ के निराकरण स्वरूप इसका प्रारम्भ हुआ. लेकिन दुख की बात है कि निजीकरण, भूमंडलीकरण जैसे मुद्दों पर, निजी क्षेत्र में आरक्षण के सवाल पर दलित नेता बिखरे हुए हैं और कोई साथ नहीं आ रहा है, न सवाल खड़े कर रहा है

 

वर्तमान में दलितों की स्थिति

वास्तविकता यही है कि इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद भी दलित आज भी देश में अपेक्षित हैं. सरकार तमाम तरह की कोशिशें कर रही हैं लेकिन वो दूरी पाटने में अभी तक असफल ही रही है.