इस साल मार्च में यमुना के किनारे आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक इवेंट हुआ था. इस तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद यमुना को बेहद क्षति पहुंची है. साइंटिस्ट्स का कहना है कि इस इवेंट से हुई पारिस्थितिक क्षति की भरपाई के लिए जलीय पौधों और जीवों की मदद चाहिए होगी, जो कभी यहां रहा करते थे.

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सदस्य ए.के. गोसाईं का कहना है कि मनुष्यों द्वारा यमुना को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए यहां पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू करनी होगी. इस परक्रिया के पूर्ण होने में कम से कम दस साल का समय लगेगा.

यमुना के दोनों किनारों पर 420 एकड़ के क्षेत्र में इकोलॉजी नष्ट हो गयी है. इसे सामान्य करने में 42 करोड़ रुपये का ख़र्चा आने का अनुमान है. जैविक पुनर्वास के बाद इसके सामान्य होने की संभावना है.

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जलीय वनस्पति के उग जाने के बाद, इसमें मछलियां आदि भी छोड़ी जाएंगी. पुनर्वास में लगने वाली रकम के अलावा, दस साल तक इस जगह का निरीक्षण करने वाली टीम का ख़र्च भी इसमें शामिल होगा.

अब बारापुला इलाके से आने वाला गन्दा पानी भी यमुना में साफ़ करने के बाद छोड़ा जायेगा. इस योजना के लिए एक टीम का गठन किया जा रहा है. आर्ट ऑफ़ लिविंग से भी इसमें लगने वाली रकम का हिस्सा वसूला जायेगा. 

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