गीता का एक श्लोक है, ‘अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:’. इस श्लोक का अर्थ है कि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, तो धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है. ये वही श्लोक है, जिसका उद्घोष आर.एस.एस. से ले कर तमाम तरह के हिंदूवादी संगठनों के सम्मेलनों में होता है. भड़काऊ भाषणों के साथ सम्मलेन में इस श्लोक का उद्घोष कुछ इस तरह किया जाता है कि आप ख़ुद भी मन ही मन कहने लगते हैं ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं.’ शायद यही वो श्लोक है, जिसने शंभूलाल रैगर में इतनी हिम्मत पैदा कर दी कि उसने अफ़राजुल की निर्मम हत्या कर उसका वीडियो तक बना डाला.

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ऐसा नहीं कि इस श्लोक को सिर्फ़ हिंदूवादी संठनों ने अपनाया, बल्कि उनसे पहले इस श्लोक को कई बार, कई लोगों ने अपनाया. महात्मा गांधी ने गीता के इस श्लोक को तो जीवन का मूल मंत्र तक कहा है, जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ भी सहमत नज़र आता है. इसलिए गांधी जी के सम्मान में 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस घोषित किया गया है. जैन धर्म के अंतिम तीर्थांकर भगवान महावीर जैन ने भी जिन दो नारों को दिया, ‘अहिंसा परमो धर्मः’ उनमें से एक था.

हालांकि हिंदूवादी संगठनों ने जिस तरह से इस श्लोक की व्याख्या की है, उसने अर्थ का अनर्थ कर डाला है. इसी का असर है दीपक शर्मा जैसे लोग अफ़राजुल की हत्या का समर्थन करते हुए शंभूलाल रैगर को हीरो बनाने पर तुले हुए हैं. दीपक शर्मा वही शख़्स है, जो कुछ महीने पहले ख़ुद को कट्टर हिन्दू कहते हुए उल-जुलूल बयानों की वजह से सुर्ख़ियों में आया था.

इस शख़्स के वीडियोज़ को देख कर आप पहले ही समझ चुके होंगे कि ये किस तरह के शिक्षित वर्ग से आता है. दीपक की कारगुजारी का सिलसिला यही ख़त्म नहीं हुआ बल्कि उसने शंभूलाल का समर्थन करते हुए एक कैम्पेन चलाया, जिसका मकसद हिंदू अतिवादी लोगों को एकजुट कर शंभूलाल के लिए समर्थन जुटाना था. 

हिंदुत्व के नाम पर उसने लोगों से चंदा एकत्रित करना शुरू किया और हिंदुत्व की पट्टी बांधे भोले-भाले लोग उसके इस अपराध में शरीक हो खुद को गौरवान्वित महसूस करने लगे. इन तस्वीरों में आप ख़ुद भी देख सकते हैं कि कैसे लोग इसकी बातों में आ कर चंदा दे रहे हैं. धर्म की पट्टी बांधे लोग ये भूल चुके हैं कि वो एक अपराधी का समर्थन कर रहे हैं.

आज जिस हिंदुत्व की बात दीपक शर्मा जैसे लोग कर रहे हैं, उसमें ख़ुद इनका ही स्वार्थ छिपा हुआ है, जो उस समय उजागर होगा, जब वक़्त हमारे हाथ से निकल चुका होगा. जिस हिन्दू धर्म की बात आर.एस.एस या हिंदूवादी संगठन करते हैं उसमें वैषणव, शैशव, कबीरपंथी, निरंकारी और आर्य समाजी जैसे पंथ कहीं मेल नहीं खाते.

इन लोगों के फलने-फूलने में सबसे बड़ा योगदान हमारा ही है. क्योंकि असल में हम ही सनातन धर्म की परिभाषा भूल चुके हैं. इसलिए किसी की भी बनी-बनाई बातों को सच मान लेते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि भगवान राम ने धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाये, पर हम ये बात क्यों भूल जाते हैं कि उनका शत्रु रावण ख़ुद भी एक हिन्दू ब्राह्मण ही था. रामायण में भी कहीं इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि रावण को मारने के बाद राम ख़ुश हुए हों, या उन्होंने कहीं इसका जश्न मनाया हो.

क्योंकि राम एक आदर्श है, जो किसी अपराधी के समर्थन में न तो रैलियां निकाल सकता है और न ही चंदा इक्कट्ठा कर सकता है.