3 दिसंबर को देहरादून में एक ऐसी घटना हुई है, जिसने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. शाम के करीब 7 बजे एक युवती प्रेमनगर से बल्लूपुर चौक जाने के लिए सिटी बस में सवार हुई थी. रास्ता लगभग दस मिनट का ही था. उसका स्टॉप आ गया, लेकिन ड्राइवर ने बस रोकने के बजाय बस की गति और बढ़ा दी. अपना स्टॉप छूटता देख लड़की ने कंडक्टर और ड्राइवर से बस रोकने को कहा पर वो उसकी बात को अनसुना कर के बस दौड़ते रहे.

बस में युवती के अलावा 10 यात्री और बैठे थे, लेकिन किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. युवती ने अपने पिता को फ़ोन लगाने की धमकी दी, लेकिन तब भी बस नहीं रोकी गयी. युवती ने ऐसी स्थिति में भी सूझबूझ से काम लिया और पुलिस का नंबर डायल किया. फ़ोन नहीं लगा, लेकिन फिर भी उसने होशियारी दिखाते हुए ऐसे दिखाया जैसे फ़ोन लग गया है और वो पुलिस को लोकेशन बता रही है. ये देख कर ड्राइवर ने बस रोक दी.

युवती बस से उतर गयी लेकिन अंधेरा होने के कारण बस का नंबर नोट नहीं कर पायी. वो लोग उसे बस से उतार कर तेज़ी से बस ले गए.

इस घटना की जानकारी खुद युवती ने ट्विटर के ज़रिये दी, जिस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ट्वीट कर के उसे सुरक्षा का भरोसा दिलाया और एसएसपी को कार्रवाई करने का आदेश दिया. पुलिस आरोपी चालक और परिचालक की तलाश में जुट गई है.

युवती ने ये भी बताया कि जब वो प्रेमनगर थाने में रिपोर्ट कराने गयी, तो उससे कह दिया गया कि ये मामला उनके इलाके में नहीं आता, इसलिए यहां शिकायत दर्ज नहीं करायी जा सकती. उससे वहां इस तरह के सवाल पूछे गए कि आपको चाहिए क्या, क्यों करवा रहे हो शिकायत. इसके बाद वो कैंट थाने गयी, जहां उसकी शिकायत दर्ज की गयी.

युवती ने एक और बात बताई कि जब वो घर जाने के लिए सवारी का इंतज़ार कर रही थी, तब उसके सामने एक ऑटो भी आकर रुका था, लेकिन उसमें 2-3 लड़कों को पहले से बैठा देख उसने उसमें जाने से माना कर दिया था.

युवती ने बताया कि लोग उसकी ग़लती बता कर उसके माता-पिता को बातें सुना रहे हैं और उसे ज़्यादा आज़ादी देने के लिए उन्हें शर्मिंदा कर रहे हैं.

यहां दो बातें गौर करने वाली हैं, पहली ये कि लोग युवती से इस तरह की बातें कह रहे हैं कि जब बच गयी, तो इतना बवाल करने की ज़रूरत क्या है.

दरअसल, लोग तब तक यहां चुप बैठना सही समझते हैं, जब तक किसी के साथ कुछ बुरा न हो जाये. लड़कियां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी सुरक्षित नहीं हैं, ये उनके लिए चिंताजनक नहीं है, लड़की की सूझबूझ के कारण वो बच गयी, लेकिन अगर उसके साथ कोई अनहोनी हो जाती तब सड़क पर मोमबत्तियां जलाने का क्या मतलब रह जाता?

दूसरी ये कि लड़की ने ऑटो में लड़के बैठे होने के कारण उसमें बैठने से मना कर दिया था, फिर भी उसके साथ एक अनहोनी होते-होते टल गयी. कुछ दिन पहले ही भाजपा सांसद किरण खेर ने चंडीगढ़ रेप केस के बारे में बयान दिया था कि अगर ऑटो में पहले से लड़के बैठे थे, तो पीड़िता को उसमें बैठना ही नहीं चाहिए था. इस बयान पर जब बवाल हुआ, तो उनका कहना था कि सावधानी बरतने में बुराई क्या है. दरअसल, सावधानी बरतने में बुराई नहीं है, लेकिन मौजूदा हालातों में सावधानी आपको सुरक्षित रखने के लिए काफ़ी नहीं है. नसीहतें बांटने से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम महिलाओं के लिए इस देश को एक सुरक्षित जगह बनाने पर ज़ोर दें.