हालत ऐसी है कि एक बार इंसान थाने जाने को राज़ी हो जाए लेकिन मौत आने पर भी अस्पताल जाने की नहीं सोचता. जिसने कभी इलाज़ का ख़र्च अपनी जेब से भरा है, वो इस बात को बख़ूबी समझता है. अपने महंगे इलाज का बिल भरना तो फिर भी जायज़ है, लेकिन आप उसके पैसे क्यों भरेंगे जो दवाईंया आपको दी ही नहीं गई, जो टेस्ट हुआ ही नहीं!
दिल्ली की सुरभी सिंह के साथ ऐसा ही हुआ. बीते सप्ताह हुई एक सड़क दुर्घटना में पेशे से पत्रकार सुरभी के पैर की हड्डी टूट गई. उनका इलाज नोएडा के सेक्टर-11 में स्थित मेट्रो अस्पताल में हुआ
जब इलाज का भुगतान करने का वक़्त आया तब बिल में ऐसे टेस्ट का ज़िक्र भी था जो किया ही नहीं गया था. अस्पताल ने अंतिम बिल में MRCP टेस्ट के पैसे भी जोड़ दिए थे. ये टेस्ट सामान्यत: लिवर, आंत या गॉल ब्लैडर की समस्या होने पर किया जाता है. इसका सुरभी के टूटे पैर से कोई लेना देना नहीं था.
हो सकता है सुरभी का परिवार इस ग़लत बिल का भुगतान कर भी देता, अगर सुरभी की बड़ी बहन ख़ुद एक डॉक्टर नहीं होती. सुरभी की बड़ी बहन ने जब बिल पर सवाल उठाया, तब पहले तो अस्पताल प्रशासन उसे समझाने की कोशिश करने लगा. लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने डॉक्टर होने की पहचान उजागर की, तो वो अपनी ग़लती स्वीकारने लगे और मान गए कि MRCP टेस्ट नहीं हुआ है. इसकी क़ीमत ग़लती से जोड़ दी गई है, नए बिल में इसे घटा दिया जाएगा.
सुरभी का इलाज करने वाले डॉक्टर ने भी ये माना कि मरीज़ का MRCP टेस्ट नहीं हुआ है. इस मामले पर अस्पताल के बिलिंग हेड तरला ने कहा कि बिलिंग स्टाफ़ ने ग़लती से टेस्ट के पैसे जोड़ दिए हैं, भविष्य में ऐसी ग़लती न हो इसलिए अंतिम बिल सौंपने से पहले 2-3 बार जांच करने के आदेश दे दिए गए हैं.
अगले दिन जब सुरभी को डिस्चार्ज कराने उसकी बड़ी बहन अस्पताल पहुंची तब वहां दोबारा से वही बिल भरने को कहा गया जिसमें MRCP टेस्ट उल्लेखित था. उसकी बहन ने जब दोबारा से टोका तब मौजूद स्टॉफ़ ने फिर से ग़लती हो जाने की बात कही. इसका मतलब बिलिंग हेड तरला का आदेश एक दिन भी असर नहीं रख पाया.
अस्पताल में बिल भरने वालों से गुज़ारिश है कि मरीज़ के साथ-साथ इलाज़ के बिल पर भी ध्यान दें.