‘लाशों के घर में झुलसती ज़िंदगी का धुंआ क्यों है. 

 
देखो मौत के शहर में ये आग ज़िंदा क्यों है.’

ज़िंदगी की आस पेट की आग में झुलस सी गई है. फिर भी इस मौत के शहर में कोई है, जो सांस लेने की हिमाकत कर रहा है. आदेश हुआ है कि उनका दिल धड़कना नहीं चाहिए फिर भी पहरेदारों से बचकर बेआवाज़ ये धड़क रहा है. इस देश में प्रवासी मज़दूर आज कुछ ऐसी ही स्थिति का शिकार हैं.  

लॉकडाउन के एलान के बाद हजारों की संख्या में दिहाड़ी मज़दूर फंस गए. जिन शहरों में दो रोटी कमाने आए थे, आज उन्हीं शहरों की श्मशान की राख में अपनी भूख शांत करने को मजबूर हैं. यमुना इलाके में प्रवासी मज़दूर श्मशान घाट के फेंके गए सड़े-गले केले खाकर अपना पेट भर रहे हैं.  

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Ndtv की रिपोर्ट के मुताबिक़, दिल्ली के निगमबोध घाट परकुछ मज़दूर फेंके गए सड़े केलों में से चुनकर खा रहे हैं.  

कंधे पर बैग टांगे एक शख़्स ने कहा, ‘ये केला है, आम तौर पर सड़ता नहीं है. इनमें से कुछ छांटकर हम अपना पेट भर लेंगे.’  

उत्तर प्रदेश अलीगढ़ से आए एक प्रवासी मज़दूर ने कहा, ‘खाने को कुछ नहीं है इसलिए केला खा रहे हैं. सबकुछ बंद है, रहने की भी जगह नहीं है. सड़क पर जाते हैं, तो पुलिस मारती है.’  

कोरोना वायरस के कारण अचनाक हुए लॉकडाउन ने प्रवासी मज़दूरों की हालत बद से बदतर कर दी है. न घर लौट पा रहे हैं और न ही उनके पास अब रहने और खाने का कोई इंतज़ाम है. ऐसे में दिल्ली के यमुना इलाके में सैकड़ों मज़दूर जमा हो गए हैं. निगमबोध घाट से लेकर मजनू के टीले तक हज़ारों प्रवासी मज़दूर यमुना के किनारे सोते मिल जाएंगे.   

हालांकि, सरकार अब इन्हें स्कूलों में शिफ़्ट कर रही है. मुख़्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 अप्रैल को एक ट्वीट किया.   

‘यमुना घाट पर मज़दूर इकट्ठा हुए. उनके लिए रहने और खाने की व्यवस्था कर दी है. उन्हें तुरंत शिफ़्ट करने के आदेश दे दिए हैं. रहने और खाने की कोई कमी नहीं है. किसी को कोई भूखा या बेघर मिले तो हमें ज़रूर बतायें.’  

सरकारें इन प्रवासी मज़दूरों को लेकर बहुत से दावें कर रही हैं लेकिन हक़ीक़त में जो भी इंतज़ाम हो रहे हैं, वो काफ़ी नहीं हैं. यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में ये मज़दूर अपने घर-गांव लौटने को बेताब हैं.