दुनिया भर के मंदिरों की अपनी अलग मान्यताएं और रीति-रिवाज़ हैं. कुछ ऐसी प्रथाएं भी हैं जो वास्तव में आपका ध्यान खींचती हैं. जैसे, कर्नाटक के कुछ मंदिर में ‘मरिजुआना’ को पवित्र मानते हैं और भक्तों को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है. साथ ही, क्या आप जानते हैं कि साबरमती नदी के तट पर स्थित दधीचि ऋषि आश्रम में श्रद्धालु सिगरेट और गुलाब चढ़ाते हैं?

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TOI की रिपोर्ट के अनुसार, 

हर गुरुवार को, सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की उम्मीद में अघोरी दादा की समाधि पर ये अनूठा चढ़ावा चढ़ाते हैं. महामारी के बीच भी अनोखी प्रथा का पालन किया जा रहा है.यहां की सबसे अधिक दिलचस्प बात ये है कि लोग अघोरी दादा को महंगी सिगरेट या फूल नहीं चढ़ा सकते.
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Times Now के अनुसार, दिद्दाधारी महादेव ट्रस्ट के प्रबंध ट्रस्टी हितेश सेवक ने बताया,

श्रद्धालु केवल सस्ती सिगरेट और फूल चढ़ाते हैं, जो उन्हें ट्रस्ट द्वारा मुफ़्त में दिया जाता है. चाहे कोई व्यक्ति आलीशान कार में आए या पैदल, सभी को सस्ती सिगरेट ही अघोरी दादा को चढ़ानी होती है. महंगी सिगरेट नहीं चढ़ाने दी जाती है.
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उन्होंने आगे कहा,

महामारी आने से पहले हर गुरुवार को सैकड़ों भक्त मंदिर में आते थे, लेकिन भारत में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या बढ़ने के साथ भक्तों की संख्या में कमी आई है. उनके अनुसार, अहमदाबाद शहर की स्थापना से पहले ही दधीचि आश्रम स्थापित किया गया था. 
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उन्होंने विचित्र प्रसाद के पीछे का कारण बताते हुए कहा,

चरस और गांजा जैसी वस्तुएं अघोरियों को दी जाती हैं, चूंकि इन वस्तुओं को क़ानून के तहत प्रतिबंधित किया गया है, इसलिए सिगरेट चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई. गुजरात के कई बड़े मंदिरों का दौरा करने के बाद अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अघोरी दादा को सिगरेट चढ़ाना शुरू किया गया.
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सिगरेट को चढ़ाने का तरीक़ा भी बताया,

भक्त सिगरेट को चढ़ाने से पहले तीर्थस्ठल पर एक रैक में जलती लौ से उसे जलाते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से उनकी मनचाही इच्छा पूरी होती है.