साधु-संतों का जीवन आम जीवन के मुक़ाबला काफ़ी कठिनाइयों भरा और काफ़ी चुनौतीपूर्ण होता है. चुनौतियों से भरा ऐसा ही एक जीवन जीने का फ़ैसला किया है गुजरात के एक हीरा के व्यापारी के बेटे ने. 12 वर्षीय भव्य शाह आने वाले मंगलावर को 400-450 संतों की मौजूदगी में जैन साधु बन दीक्षा ग्रहण करेगा.

भव्या के परिवार वाले उसके इस फ़ैसले से काफ़ी खुश हैं. शाह परिवार इस फ़ैसले को जग जाहिर करने के बाद जश्न भी मनाएगी. 

अपने इस निर्णय पर भव्या शाह का कहना है, ‘मुझे खुशी है कि मैंने भगवान द्वारा दिखाए गए सत्य के मार्ग को अपनाया. मैं अपने माता-पिता का शुक्रगुज़ार हूं, जो उन्होंने मुझे इस रास्ते के बारे में बताया. मैं चाहूंगा कि एक दिन वो भी इस मार्ग को अपनाएं.’

भव्या के पिता दिपेश शाह जो की एक सफ़ल हीरा व्यापारी हैं ने कहा कि हमारा परिवार भव्या के दीक्षा लेने के फैसले से बहुत खुश है.

भव्या के पिता, दिपेश शाह का कहना है कि उनका परिवार अपने बेटे के साधु बनने से खुशी है. चार साल पहले उनकी बेटी ने भी 12 साल की उम्र में ऐसा किया था.

जैन धर्म के अनुसार, ‘दीक्षा’ एक संस्कार है जिससे बंध कर आध्यात्म पाने के लिए, मोह-माया की सभी चीज़ों को त्याग देना होता है. जैन साधू भौतिक वस्तुओं के साथ अपनी भावनाओं का भी त्याग कर देते हैं.