हाल ही में मोदी सरकार ने संसद में ‘नागरिकता संशोधन विधेयक‘ (कैब) को लोक सभा और राज्य सभा दोनों सदनों से पारित कर इसे कानून बनाया. इसके बाद देशभर में इसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. इसकी शुरुआत पूर्वोत्तर भारत से हुई. ख़ास तौर से असम में इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए. इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली की जेएनयू के बाद जामिया यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए.
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गृहमंत्री अमित शाह ने साफ़ तौर पर कहा है कि CAA के बाद अब जल्द ही देशभर में NRC भी लागू कर दिया जाएगा.
आख़िर CAA और NRC क्या है? और इसमें क्या अंतर है?
20 नवंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने सदन को बताया था कि, उनकी सरकार दो अलग-अलग नागरिकता संबंधित पहलुओं को लागू करने जा रही है. इस दौरान उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी को लेकर जानकारी दी थी.
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इस दौरान उन्होंने कहा था कि, CAA में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है. जबकि NRC के ज़रिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.
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जानकारी दे दें कि NRC को मूल रूप से सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से असम के लिए ही लागू किया गया था. इसके तहत इसी साल अगस्त माह में यहां के नागरिकों का एक रजिस्टर जारी किया गया. इस दौरान क़रीब 19 लाख लोगों को इस सूची से बाहर रखा गया. उन्हें वैध प्रमाण पत्र के साथ अपनी नागरिकता साबित करने को कहा गया.
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मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल के दौरान से ही इस विधेयक को पास करवाने की कोशिश में लगी हुई थी. इस दौरान पूर्वोत्तर में कई समूहों ने बीजेपी का जमकर विरोध किया था. लेकिन जब 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम आए, तो पूर्वोत्तर की 25 संसदीय सीटों में से 18 पर बीजेपी व उसकी सहयोगी पार्टियों को जीत मिली.
अब बीजेपी को लगता है कि हिंदुओं और ग़ैर-मुसलमान प्रवासियों को आसानी से नागरिकता देने की वजह से उसे बड़ी संख्या में समर्थन मिलेगा. मोदी सरकार ने इससे पहले इसी साल अपने पहले कार्यकाल के दौरान 8 जनवरी को इसे लोकसभा में पास कराने की कोशिश की थी. इसके बाद पूर्वोत्तर में इसको लेकर हिंसक विरोध शुरू हो गया था, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश ही नहीं कर पाई थी.
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दरअसल, ‘नागरिकता संशोधन क़ानून’ के मुताबिक़ पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. यानी की सभी गैर मुस्लिम समुदाय.
आख़िर पूर्वोत्तर में ‘नागरिकता संशोधन क़ानून’ का विरोध क्यों हो रहा है?
नागरिकता संशोधन क़ानून का असर वैसे तो पूरे देश में होना है, लेकिन इसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में अधिक हुआ है. इस दौरान सबसे पहले इसका विरोध वहां के विश्वविद्यालयों में देखने को मिला था. अब इसका असर देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में भी देखने को मिल रहा है.
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दरअसल, इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीक़े से आ कर बस रहे हैं. विरोध इस बात का हो रहा है कि मोदी सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने को लेकर प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता को आसान बनाना चाहती है.