दिव्यांग इंसान को समाज हमेशा ही दया की भावना से देखता है. मगर वो अक्सर साहस और अधिक से अधिक दृढ़ संकल्प के साथ बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए लड़ते हैं ताकि वो सबको ये बता सकें कि उनको लोगों की दया नहीं, बल्कि सुविधाओं की ज़रूरत है. 

तमिलनाडु के पेन्नादाम के सरकारी स्कूल में 37 वर्षीय हेमकुमारी पिछले 15 सालों से पढ़ा रही हैं. 

उनकी मां ने उन्हें दिव्यांग होने की वजह से बचपन में पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा था. मगर उन्होंने हार नहीं मानी, पढ़ाई भी पूरी की और आज कुड्डलोर की युवा लड़कियों को प्रेरित कर रही हैं.   

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हेमकुमारी का जन्म से ही कमर के नीचे का हिस्सा लक़वाग्रस्त है. हेमकुमारी कहती हैं, 

मेरी सेहत के चलते मेरी मां ने मुझे पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा था. मगर मैं पढ़ना चाहती थी और एक टीचर बनना चाहती थी. 

हेमकुमारी के इसी दृढ़ निश्चय ने उन्हें एक या दो बार नहीं, बल्कि चार बार ‘बेस्ट टीचर अवॉर्ड’ दिलाने में मदद की है. वर्ष 2020 के लिए हाल ही में उन्हें ‘भारती पुधुमई पेन्न अवॉर्ड’ मिला है. इसके अलावा उन्हें कई अन्य अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. 

फरवरी 2019 में ही उन्होंने एक स्मार्ट क्लास भी स्थापित की. हेमकुमारी को मास्टर की डिग्री करने के लिए 60,000 रुपये मिल रहे थे. उन्होंने इन ही रुपयों की मदद से सरकारी स्कूल में स्मार्ट क्लास बनवाना शुरू कर दिया था. अब ये स्कूल भी किसी प्राइवेट स्कूल से कम नहीं है. 

वो आगे भी बच्चों की पढ़ाई के लिए अपना योगदान इसी तरह देती रहना चाहती हैं.