कुछ करने की चाह हो और इरादे मजबूत तो आपको सफ़ल होने से कोई चीज़ नहीं रोक सकती. यहां तक की दिव्यांगता भी नहीं. आज हम आपको ऐसे ही एक दिव्यांग की प्रेरणादायक कहानी बताएंगे जिसने कई बाधाओं को पार करते हुए पहले ही अटेंप्ट में NEET की परीक्षा पास कर ली. फ़िलहाल वो जोधपुर के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

बात हो रही है शाहपुरा के रहने वाले दिव्यांग प्रवीण चौहान की. जन्म से ही वो दिव्यांग थे. उस पर से 3 साल की उम्र में ही पिता का साया उठ गया. नियती न जाने क्या चाहती थी, उनकी मां ने भी कुछ दिनों बाद उन्हें ताऊ के पास छोड़ कर दूसरा घर बसा लिया.

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अब इस बिन मां-बाप के बच्चे को ताऊ श्रीराम चौहान, ताई तारा देवी और दादी सुरजी देवी ने मिलकर पाला. प्रवीण के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. लेकिन उनकी पढ़ाई को उन्होंने कभी रुकने नहीं दिया. ताऊ और दादी ने मज़दूरी कर के उन्हें पढ़ाया.

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प्रवीण भी मन लगाकर पढ़ते थे. उन्होंने कभी अपने परिवार को निराश नहीं किया. 10वीं की परीक्षा 75 प्रतिशत अंक से पास करने के बाद गांव से दूर पावटा के स्कूल में एडमिशन लिया. क्योंकि गांव के स्कूल में साइंस स्ट्रीम नहीं थी. यहां से उन्होंने 12वीं की परीक्षा 86 फ़ीसदी अंकों से पास की. 

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अब चूकीं उन्हें डॉक्टर बनना था तो मन लगाकर NEET की परीक्षा की तैयारी करने लगे. वो इस साल पहली बार NEET के एग्ज़ाम में बैठे थे और पहले ही अटेंप्ट में इसे पास कर लिया. प्रवीण ने दिव्यांग श्रेणी में ऑल इंडिया में 484वीं रैंक प्राप्त की. फ़िलहाल वो जोधपुर के एस.एन. मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं.