एक इंसान की ज़िंदगी में कुछ ग़म ऐसे होते हैं, जो उसे तोड़कर रख देते हैं. किसी अपने को खोने का दुख कुछ ऐसा ही होता है. क़िस्मत के आगे बेबस शख़्स अपनों का साथ छूटता देखने को मजबूर होता है. 

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मगर जैसे सुबह के उजाले की उम्मीद रात का अंधेरा पैदा करता है. वैसे ही कभी-कभी कुछ ग़म एक शख़्स की ज़िंदगी में निराशा भरने के बजाय उसमें ज़िंदादिली पैदा कर देते है. 

डॉक्टर राजेश मेहता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. डॉ. राजेश ने 31 साल पहले अपने बड़े भाई को एक सड़क दुर्घटना में खो दिया. अपने भाई से दूर होने की पीड़ा ने उन्हें दूसरों के दुखों के क़रीब पहुंचा दिया. जिसके बाद उन्होंने ज़रूरतमंद लोगों का मुफ़्त इलाज करने और सामुदायिक रसोई चलाने का फ़ैसला किया. 

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डॉ. राजेश हिसार, हरियाणा के कई अस्पतालों में जाते हैं और ज़रूरतमंदों के लिए होम्योपैथिक दवा का मुफ्त क्लिनिक चलाते हैं. इसके अलावा, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर राजेश सप्ताह में एक बार बच्चों के लिए कम्युनिटी किचन ऑर्गनाइज़ करते हैं और उन्हें स्टेशनरी भी देते हैं. 

‘मैंने 1989 में एक दुर्घटना में अपने बड़े भाई को खो दिया था. वो मेरी प्रेरणा थे. हम जीवनभर ख़ुद के लिए ही काम करते रहते हैं, लेकिन इस दुख ने धीरे-धीरे मुझे ये विश्वास दिलाया कि अब समाज को कुछ वापस देने का समय आ गया है.’

-डॉक्टर राजेश मेहता

उन्होंने बताया कि ‘उस दिन से हम हर हफ़्ते ग़रीब और ज़रूरतमंद बच्चों को दिन में एक बार पौष्टिक भोजन खिलाते हैं. ज़्यादातर गुरुवार को हम सेक्टर 13 साई मंदिर में ऐसे बच्चों के लिए कम्युनिटी किचन ऑर्गनाइज़ करते हैं.’

बता दें, 1994 में, श्री साई शक्ति चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना उनके माता-पिता द्वारा की गई थी, ताकि कम उम्र के बच्चों की मदद की जा सके. इस ट्रस्ट के ज़रिए 5 से 15 वर्ष की आयु के 400 से अधिक बच्चों को खाना मिलता है. 

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उन्होंने बताया, ‘हम उन्हें नोटबुक, पेंसिल, पेन और अन्य सभी वस्तुओं के अलावा दस्ताने, जूते, कपड़े और सर्दियों के कपड़े देते हैं ताकि वे अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकें और वंचित महसूस न करें.’

वहीं, क्लिनिक एक बार में कम से कम 20 ज़रूरतमंद मरीज़ों की मदद करता है.