मुंबई यूनिवर्सिटी में फ़िज़िक्स की प्रोफ़ेसर डॉ. वैशाली बांबोले ने अपने सालों के अनुसंधान के बाद एक ऐसी तक़नीक विकसित की है, जो तीन साल तक इडली, उपमा, सफ़ेद ढोकला जैसे भारतीय व्यंजन संरक्षित रखता है. वो भी बिना किसी प्रेज़रवेटिव या केमिकल के.
ये तक़नीक खाने के स्वाद और पोषक तत्वों को भी बनाए रखती है. इस तक़नीक का सबसे ज़्यादा लाभ सशस्त्र बलों के जवानों, अंतरिक्ष यात्रियों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे लोगों को मिलेगा.
Mumbai: Physics professor at Mumbai University, Dr Vaishali Bambole, says her department has discovered a technology to preserve Indian cuisines like idli, upma & white dhokla for 3 years without adding any preservatives or impacting its taste and nutritional value. #Maharashtra pic.twitter.com/HmJHFzqShh
— ANI (@ANI) February 7, 2019
डॉ. वैशाली बांबोले इस तक़नीक पर 2013 से काम कर रही थीं और अब इसे पेटेंट करवाने के लिए प्रयासरत है. इस तक़नीक में इलेक्ट्रॉन किरण विकिरण तक़नीक का इस्तेमाल किया गया है.
Dr V Bambole: I’ve been working on this since 2013. This is electron beam radiation technique. We’ve used this technology for the 1st time on cooked food. It can be used in packaging food for armed forces, astronauts as well as for mass distribution in case of natural calamity pic.twitter.com/RbIELcyPN4
— ANI (@ANI) February 7, 2019
Mid-Day की एक रिपोर्ट में उन्होंने कहा:
मैं पिछले 15 सालों से इलेक्ट्रान बीम इररेडिएशन (EBI) तक़नीक पर काम कर रही थी और इसका इस्तेमाल रासायनिक बहुलकीकरण में एक उत्प्रेरक के रुप में कर रही थी. ये खाने पर कीटाणुनाशक के रूप में काम करते हुए इसको लम्बे समय तक संरक्षित करता है.
Dr Vaishali Bambole: We selected food items that contain less amount of oil & protein. Yesterday we opened idli after 3.5 years & that was still fresh. We experimented on several food items but got the best results in these 3 food items (upma, idli & white dhokla). https://t.co/7APKvwZG02
— ANI (@ANI) February 7, 2019
डॉ. बांबोले ने 2013 में अपना ये विचार बोर्ड ऑफ़ रेडिएशन एंड आइसोटोप टेक्नोलॉजी (BRIT) के सामने रखे थे, जो भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग की एक स्वतंत्र इकाई है. उनको ये विचार अच्छा लगा और आगे रिसर्च और एक बायो-नैनो लैब की स्थापना के लिए उन्होंने 45 लाख रुपए स्वीकृत किए.
अब अगला क़दम इस तकनीक को व्यावसायिक उत्पादन में प्रयोग करना है ताकि भारतीय व्यंजनों का अधिक से अधिक निर्यात किया जा सके.