COVID-19 महामारी ने लगभग हर धंधे की कमर तोड़ दी है. इंटरनेशनल ड्रग ट्रेड भी इससे अछूता नहीं है. भारत के तटों पर हाल ही के दिनों में कई ऐसी वारदातें हुई हैं, जब अलग-अलग ड्रग्स के शिपमेंट तैरते हुए पाए गए हैं.

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Vice की इन्वेस्टीगेशन के अनुसार 21 जून को गुजरात के कच्छ के जखाऊ तट पर चरस का एक कन्साइनमेंट, पेट्रोलिंग ऑफिसर्स को तैरता हुआ मिला. पुलिस को 183 पैकेट्स मिले हैं, जिनकी अनुमानित कीमत भारतीय बाजार में 2 करोड़ या ($262,995) बताई जा रही है. 

(Representational Image) The Himalayan Times

उसके 2 दिन पहले, 19 जून को तमिल नाडु के मामल्लपुरम या महाबलिपुरम के तट पर तैरता हुआ एक ड्रम मिला. मछुआरों ने पुलिस को इसकी ख़बर दी और उस ड्रम से उन्हें 78 किलो क्रिस्टल मेथ मिला. इन ड्रग्स को चीन के एक चाय ब्रैंड के कन्साइनमेंट में छुपा के ले जाया जा रहा था. केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो और क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट के अनुसार इस शिपमेंट की कीमत अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में 3 करोड़ हो सकती है.

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मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान द्वारा प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, भारत की भौगोलिक लोकेशन के कारण यहां से ड्रग तस्करी ज़्यादा होती है. हमारे देश के दोनों तरफ़ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा अफ़ीम की पैदावार होती है. इन्हें ‘गोल्डन क्रिसेंट’ और ‘गोल्डन ट्रायंगल’ कहा जाता है. गोल्डन क्रिसेंट में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान की तिकड़ी आती है और गोल्डन ट्रायंगल में म्यांमार, थाईलैंड और लाओस. 

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यही मुख़्य कारण है कि गुजरात में समुद्र के ज़रिये, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से ड्रग्स देश में आते हैं और पंजाब, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश जैसी जगहों पर पहुंचते हैं, जहां डिमांड ज़्यादा है. कई बार इन ड्रग्स को जीरे के पैकेट में छुपा कर भूमिगत टनल और पाइप के ज़रिये अपने गंतव्य तक पहुंचाया जाता है. कुछ हफ़्ते पहले तमिल नाडु के रामनाथपुरम में पुलिस ने 11.4 किलो के ड्रग्स का कन्साइनमेंट पकड़ा था, जिसमें मेथ, एक्सटेसी, हेरोइन और अफ़ीम को श्री लंका भेजा जा रहा था. 

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प्रशासन और पुलिस दोनों हैरान हैं कि आखिर ये ड्रग्स तैरते हुए कहां से आ रहे हैं? इनके पीछे कौन है? और क्या जब दुनिया COVID-19 महामारी से लड़ रही है, देश में ड्रग स्मगलिंग को काबू में किया जा सकेगा?