Dusharla Satyanarayana Turned Land Into Forest: प्रकृति हमारे आज और आने वाले कल के लिए बहुत ज़रूरी है. हम सब जानते हैं कि रफ़्तार भरी शहरी ज़िंदगी के कारण पर्यावरण में बहुत बदलाव आए हैं. जहां देखो वहीं लंबी बिल्डिंग्स हैं. लेकिन इन सब के बीच तेलंगाना में स्थित राघवपुरा गांव में 70 एकड़ में फ़ैला एक जंगल भी है. जिसके कर्ता-धर्ता दुशरला सत्यनारायण हैं. जिन्होंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन को जंगल बना दिया है. चलिए इस आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं दुशरला सत्यनारायण का उद्देश्य और उनकी ये इंस्पायरिंग स्टोरी- (Forest Man of Telangana)
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दुशरला सत्यनारयण के ख़ूबसूरत पहल के बारे में जानिए (Forest Man of Telangana Dusharla Satyanarayana Inspiring Story)
राघवपुरा गांव में 70 एकड़ में एक सुन्दर जंगल फ़ैला हुआ है. जिसके आस पास न आपको कोई बाउंड्री दिखाई देगी और न ही किसी की पहरेदारी. इस जंगल में कुछ पेड़ हैं जो बहुत पुराने हैं और कुछ जो साल दो साल पहले लगाए गए हैं. ये जंगल हज़ारों जीव-जंतुओं का बसेरा है.
इस तस्वीर में दिख रहे जंगल के अकेले माता-पिता दुशरला सत्यनारायण हैं. जिन्होंने न तो ये ज़मीन खरीदी और न ही इसे Lease पर लिया है. ये उनकी अपनी पुश्तैनी ज़मीन है जिसको जंगल को बनाए हैं.
इस जंगल में 13 तालाब और 5 करोड़ पेड़ पौधे हैं
तेलंगाना में बसे इस जंगल की ख़ूबसूरती देखने को बनती है. जहां 5 करोड़ से भी ज़्यादा पेड़ पौधे और 13 तालाब हैं. साथ ही इस जंगल में अलग-अलग तरह के फ़ल और फ़ूल भी हैं, कई पेड़ 50 साल पुराने भी हैं. जिनकी देखभाल रोज़ दुशरला ही करते हैं. उन्होंने बताया-
“मैं चार साल की उम्र से जंगल बना रहा हूं. वो इलाका कभी ग्रासलैंड था, जहां मैं इमली और दूसरे पौधों के बीज बिखेरता था. ये कम उम्र से ही प्रकृति के प्रति मेरे जुनून और प्यार के कारण था कि मैं अपने आसपास पेड़ रखना चाहता था,”
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अंतिम सांस तक जंगल रक्षा करेंगे
सरकार और रियल एस्टेट डेवलपर्स ने भी दुशरला सत्यनारयण की इस ज़मीन को ख़रीदने की कोशिश की थी. लेकिन दुशरला ने अंतिम सांस तक इस जंगल की रक्षा करने का प्रण लिया है.
बैंक में रह चुके हैं अधिकारी
दुशरला सत्यनारयण ने 4 साल की उम्र से खेती शुरू कर दी थी. उन्होंने एग्रीकल्चर में बीएससी और बैंक में अधिकारी भी रह चुके हैं. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और इसे अपना Natural Ecosystem बना लिया.
उन्होंने बताया, “मैंने पिछली तीन पीढ़ियों से इस भूमि की रक्षा की है. परिवार के कई सदस्य जमीन का व्यावसायीकरण करने की इच्छा व्यक्त करते हैं. कुछ ने 100 करोड़ रुपयों का भी ऑफर दिया था. लेकिन मैं इसे गैर-पर्यावरणीय कारणों से जाने नहीं दूंगा . यहां तक कि मेरे बच्चे भी जमीन के वारिस नहीं हैं.”
दुशरला सत्यनारयण का पर्यावरण प्रेम तो काबिले तारीफ़ है.