सरकारी मुआवज़ा पाने के लिए लोग क्या-क्या जुगाड़ नहीं करते. कभी आपने किसी ज़रूरतमंद को मुआवज़ा लेने के लिए पापड़ बेलते देखा होगा, तो कभी अयोग्य लोग भी कुछ न कुछ फर्ज़ीवाड़ा कर के मुआवज़ा पा लेते हैं. लेकिन, पीलीभीत में मुआवजा लेने के लिए लोगों ने जो तरीका निकाला है वो न सिर्फ़ हैरान करता है, बल्कि इंसानियत को ही झकझोर देने वाला है.

वाइल्ड लाइफ़ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (WCCB) के कालिम अथर की मानें तो पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के आस-पास रहने वाले लोग मुआवज़ा पाने के लिए अपने परिवार के बुज़ुर्गों को जंगल में बाघ का शिकार बनने के लिए भेज रहे हैं. इसके बाद उनके शव को खेतों में लाकर रख देते हैं और लाखों के मुआवज़े की मांग करते हैं. गौरतलब है कि टाइगर रिज़र्व के परिसर में ऐसी मौत होने पर मृतक के रिश्तेदार मुआवज़े के हक़दार नहीं होते हैं.

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पिछले कई महीनों में रिज़र्व के आसपास बाघ के हमले से बुज़ुर्गों की मौत के कई मामले सामने आए हैं. WCCB के कालिम अथर ने इन मामलों की जांच की. उन्होंने स्थानीय लोगों से बात की और हर मामले की अलग से जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट WCCB को सौंपी. अथर ने Times Of India को बताया कि ब्यूरो ने मामले को National Tiger Conservation Authority को भेजने का फ़ैसला लिया है.

एक स्थानीय किसान जरनैल सिंह ने कहा कि बुज़ुर्ग अपनी स्वेच्छा से ऐसा करते हैं. उन्हें लगता है कि जब इस जंगल से उन्हें संसाधन नहीं मिल सकते, तो उन्हें अपने परिवार की गरीबी मिटाने का यही एक तरीका दिखाई दे रहा है.

गौरतलब है कि 1 July को 60 साल की ननकी देवी की बाघ के हमले से मौत हो गई थी.

PTI की रिपोर्ट के अनुसार, घटना के वक़्त महिला खेत में थी. पुलिस के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि गांव वालों ने महिला की चीख सुनी थी, लेकिन जब तक वो उसे बचाने आए, बाघ उसे जंगल में खींच चुका था. बाद में उसका आधा शव मिला था.

इसी मामले में अतहर की दलीलें बिल्कुल अलग हैं. Scoopwhoop News से बातचीत में उन्होंने कहा कि रिज़र्व क्षेत्र में जाना 15 जून से प्रतिबंधित है. इसके बावजूद देवी वहां गईं. उनके साथ 3 महिलाएं और थीं. जब बाघ ने हमला किया तो वे तीनों भाग आईं. इसके बाद लगभग 20 लोग जंगल में गए और देवी के शव को खेत में लाकर रख दिया और बताया कि खेत में काम करते वक़्त बाघ ने उनपर हमला किया.

अथर ने सवाल उठाए कि देवी के दो बेटे हैं तो फ़िर उसे जंगल में क्यों भेजा? वो खुद क्यों नहीं गए? 40 साल के मिही लाल पर भी जंगल में लकड़ी काटते समय बाघ ने हमला कर दिया था. अतहर ने इस मामले में भी आरोप लगाया कि बाद में उसके शव को खेत में लाकर रख दिया गया.

अथर ने कहा, ‘अगर किसी की मौत इस क्षेत्र में होती है, तो उसके शव को निकालने का काम वन अधिकारियों का है, गांववालों का नहीं. गांववालों ने हमें कैमरे पर बताया है कि असल में क्या हुआ था, लेकिन अगर उसका खुलासा कर देंगे तो गांव में बवाल हो जाएगा.’ अथर ने ये फुटेज जिला वन अधिकारी को सौंप दी है.

उनके अनुसार, पिछले एक दशक में अब तक बाघ के हमले से रिज़र्व में 17 मौतें हो चुकीं हैं. इस बात का कोई डाटा मौजूद नहीं है कि इनमें से कितनों के परिवार ने मुआवजे की मांग की है. हो सकता है कि देवी का परिवार ऐसा करने वाला पहला परिवार हो.

अथर को मामले के राजनीतिक रंग ले लेने का भी अंदेशा है. पूर्व विधायक हेमराज ने पीड़ितों के मुआवजे की मांग के पक्ष में अनशन करने की धमकी दी है.

इधर, ज़िला प्रशासन ने इन सारे आरोप को खारिज कर दिया है. ज़िलाधिकारी शीतल वर्मा ने ScoopWhoop से कहा, ‘मैंने इससे ज़्यादा अनर्गल आरोप कभी नहीं सुने थे.’

उन्होंने कहा कि ये बात इसलिए बेबुनियाद है क्योंकि कोई ऐसा नहीं करेगा कि पहले किसी को मरने के लिए जंगल में भेजे और फ़िर खुद की जान खतरे में डालकर उसके शव को लेने जाए. उन्होंने इसे मात्र एक वाहियात कल्पना बताया.

सरकार लगातार लोगों को जंगल में न जाने के लिए चेतावनी जारी करती रहती है. जिलाधिकारी शीतल वर्मा ने कहा कि अगर हम टाइगर रिज़र्व की फ़ेंसिंग कराएंगे, तो 700 किलोमीटर लंबी फ़ेंसिंग करानी पड़ेगी. इसलिए हम लोगों से अपील करते रहते हैं कि वो वन क्षेत्र में न जाएं.