एक ज़माना था जब बिहार अपनी नालंदा यूनिवर्सिटी के दुनिया भर में विश्व विख्यात था. दूर-दूर से लोग यहां शिक्षा के लिए आते थे और रह कर ज्ञान अर्जित किया करते थे, पर इन दिनों बिहार में जिस तरह से 10वीं और 12वीं के टॉपर निकल आ रहे हैं. उसने बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है.

हाल ही में बिहार अभी टॉपर घोटाले से उबरा भी नहीं था कि एक नया मामले सामने आ गया है. दरअसल 2017 में आये नतीजों में बिहार बोर्ड ने परिणामों की विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए छात्रों को बड़ी संख्या में फेल किया था. इससे न सिर्फ़ छात्रों में बल्कि माध्यमिक शिक्षक संघ में रोष फैल गया.

शिक्षक संघ ने इसके ख़िलाफ़ बोर्ड को चुनौती दी और पेपरों को दोबारा चेक करने की मांग की. शिक्षक संघ के जनरल सेक्रेटरी शत्रुघ्न प्रसाद सिंह का कहना है कि ‘हम ने बिहार बोर्ड में फैली अनियमताओं के ख़िलाफ़ जांच की मांग की है. हमारा विश्वास है कि इसमें न्यायिक जांच की भी ज़रूरत है. ‘संघ ने कहा कि ‘17,23,911 छात्रों में से सिर्फ़ 8,63,950 का पास होना अपने आप में बोर्ड पर सवालिया निशान लगाता है.’

इस मामले ने और ज़ोर उस वक़्त पकड़ा, जब दसवीं के नतीजों में एक छात्र को मैथ्स में जीरो नंबर दे कर फेल कर दिया गया था, पर दोबारा चेक हुए पेपर में इस छात्र के 94 मार्क्स आये हैं. अकेले बेगुसराई के BSS कॉलेज में ऐसे दर्जनों मामले हैं, जहां छात्रों के नम्बरों में धान्धलेबाज़ी पाई गई है.