गौमांस को लेकर भारत में पिछले दिनों कई विवाद हुए हैं. यहां गौमांस खाए जाने के शक़ में भी हिंसा की घटनाएं हो जाती हैं. वजह है, देश में गाय को पूजनीय मानना, लेकिन आपको जान कर हैरानी होगी कि पाकिस्तान में भी ऐसे कई परिवार हैं, जो गाय पालते ज़रूर हैं, लेकिन गौमांस को हाथ भी नहीं लगाते.

हाफ़िज़ाबाद के बुज़ुर्ग ग़ुलाम हसन कहते हैं “हमारे यहां बाप-दादा के समय से गाय पाली तो जाती है लेकिन कभी उसके मांस को घर की दहलीज के अंदर नहीं आने दिया.”

बंटवारे से पहले के समय को याद करते हुए वो कहते हैं “मेरा जिगरी दोस्त डॉक्टर हीरालाल पड़ोसी था, ग़मी व खुशी में बढ़-चढ़ कर शरीक होता था, तो किस मुंह से गाय का मांस खाते जिसे वो पवित्र मानता था.”

ग़ुलाम हसन की बातें आज भी विभाजन से पहले यहां पाई जाने वाली धार्मिक सहिष्णुता के दर्शाती है, जिसे सत्तर साल बाद भी कई परिवार जीवित रखे हुए हैं.

पंजाब की तारीख़ और संस्कृति पर कई पुस्तकों के लेखक प्रोफ़ेसर असद सलीम शेख़ ने बताया कि भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के दो वर्ग हैं, जिनमें एक वर्ग स्थानीय नहीं था, जो अरब, तुर्की, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान आदि से आने वाले मुसलमान थे और उन सभी मुसलमानों के रस्मो-रिवाज़, सभ्यता वही, थी जो वे अपने क्षेत्रों से लाए थे. दूसरा वर्ग वह था, जो स्थानीय हिंदुओं का था और धर्म बदल कर मुसलमान हुआ था. दूसरे क्षेत्रों से आने वाले मुसलमान हर तरह के मांस का उपयोग करते थे, लेकिन दूसरा वर्ग गाय का मांस खाने से परहेज़ करता रहा, क्योंकि वह हिंदुओं के साथ सदियों से रह रहे थे और उनकी सभ्यता उनके अंदर रची-बसी रही और मुसलमान होने के बावजूद उन्होंने इन पहलुओं को छोड़ा नहीं.

हिंदुओं के अनुपात में मुसलमान अल्पसंख्यक थे, जिसकी वजह से किसी ऐसी परंपरा को नहीं अपनाया जाता था, जिसके कारण बहुमत की धार्मिक भावनाएं आहत हों. इसके अलावा भाईचारा और सहिष्णुता भी थी, जिसकी वजह से बाद में किसी क्षेत्र में अगर मुसलमान बहुमत में आ गए, तो भी उन्होंने गोमांस खाने से परहेज़ ही किया.

अकबर सेक्युलर था, तो उसने धार्मिक सहिष्णुता को बनाए रखने के लिए गाय के मांस पर पाबंदी भी लगाई थी. पाकिस्तान के कई घरो में दशकों से गौमांस न खाने की परंपरा चली आ रही है. पाकिस्तान में कई ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की अनमोल यादों को संभाल कर रखा हुआ है.

ये बात सबूत है कि पहले के समय में लोग अब से ज़्यादा सहिष्णु और मेल-जोल से रहने वाले थे. अब भी लोग उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं. यदि उस समय का धार्मिक सौहार्द वापस आ जाये, तो धर्म के नाम पर हिंसा रुक सकती है.