महिलाओं की स्थिति को संवारने को लेकर जहां एक ओर देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान चल रहा है. वहीं कुछ लोग अनोखी कोशिश से बेटियों की रक्षा कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के सभी घरों के नेमप्लेट्स में घर की बेटियों के नाम रखे जा रहे हैं.

जिले में लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए इस तरह की मुहिम शुरु की जा रही है, ताकि घर की लड़कियां अपनी एक अलग पहचान बना सकें.

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दरअसल, 2011 में इस जिले में लिंगानुपात में भारी गिरावट देखने को मिली थी. 1000 लड़के के मुकाबले जिले में कुल 927 लड़कियां ही थी, लोगों को लगा कि लड़कियों की संख्या कम हो रही है, ऐसे में जागरुकता फैलाने के लिए 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर इस कार्यक्रम का शुभांरभ किया गया.

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लड़कियों के लिए यह निर्णय काफ़ी अच्छा लगा. भुवनेश्वरी कुमारी रेवाकर को भी एक अलग पहचान मिली. ये वही हैं, जिन्होंने 17 साल की उम्र में शादी से मना कर पूरे देश की सुर्खियों में आई थी.

इस मुहिम पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए 20 साल की एक लड़की कहती है कि महिलाओं के सम्मान में लिया गया यह निर्णय वाकई में बहुत बढ़िया है.
वहीं 10 साल की खुशी जोशी कहती हैं कि मेरे पिता नार्कोटिक्स विभाग में कार्यरत हैं. पहले घर के आगे उनके नाम का नेम प्लेट लगा हुआ था, अब मेरे नाम का है. ये मेरे लिए ख़ुशी की बात है.
12 साल की चैताली नीमा कहती है कि ये मेरा बर्थ डे गिफ़्ट है. मेरी बहन का भी नाम घर के आगे लिखा गया है.
District Child Protection के अधिकारी राघवेंद्र शर्मा कहते हैं कि इस अभियान के तहत 100 परिवारों ने अपने घर के आगे अपनी बेटियों का नाम लिखवाया. इसे और प्रचारित करने की ज़रुरत है, ताकि, देश में महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़े.

दहेज प्रथा के कारण हम अपनी बेटियों को एक बोझ समझते हैं. इस कारण हम उन्हें बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखते हैं. हालांकि, इस कोशिश से हमारी सोच ज़रुर बदलेगी.

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