कोलकाता में सचिन कुमार मुख़र्जी आज एक ऐसा नाम है, जिसे लोग उनके नाम से ज़्यादा काम की वजह से पहचानते हैं. 76 वर्ष के सचिन 30 साल की उम्र से कागज़ से एयर बलून बना रहे हैं, जिसे ‘फानूस’ कहा जाता है. उनके इसी काम की वजह से लोग उनको ‘फानूस मानुष’ कहते हैं.
भद्रेश्वर के रहने वाले सचिन वेस्ट बंगाल हेल्थ सर्विस में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. उत्तरी कोलकाता के बेलगछिआ में पैदा हुए सचिन का कहना है कि वो बचपन से ही फानूस बना रहे हैं, पर असल में उन्हें फानूस बनाने की प्रेरणा गौरी शंकर डे से मिली, जो उस समय राज्य में फानूस के क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम थे.
बचपन के दिनों को याद करते हुए सचिन कहते हैं कि ‘मुझे याद है कि मैं छत से खुले आसमान में छोटी-छोटी रौशनियों को उड़ते हुए देखा करता था, जिसका मुझ पर काफ़ी प्रभाव पड़ा.’
सबसे कमाल की बात ये है कि फानूस बनाने के लिए सचिन ने कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली. वो बस गौरी शंकर डे को फानूस बनाते हुए देखा करते थे. इस बारे में सचिन का कहना है कि ‘जिस उम्र में लड़कों को बीड़ी, सिगरेट और शराब की लत लगती है, उस उम्र में मुझमें फानूस बनाने की लत लग गई.’
आज की पीढ़ी के बारे में सचिन कहते हैं कि ‘आज के बच्चों में धैर्य की कमी है, वो चाहते हैं कि कोई भी काम बस जल्दी से हो जाए. उनका ऐसा ही कुछ रवैया फानूस को लेकर भी होता है. वो उस तरह से घंटों बैठ कर ध्यान नहीं दे सकते, जैसे मैं शंकर डे को देखा करता था. जबकि फानूस बनाने के लिए ध्यान और धैर्य दोनों का होना ज़रूरी है.
फानूस अचानक ही कोलकाता की गलियों में नहीं आया है, बल्कि सालों से ये यहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है. सचिन कहते हैं कि कभी बीड़ों स्ट्रीट का भोला नाथ धाम, फानूस का गढ़ हुआ करता था. यहां लोगों के बीच फानूस उतना ही आम था, जितना कि हवा में सांस लेना, पर आज फानूस अपने वजूद को बचाने के लिए लड़ रहा है.
इसके पीछे सचिन आज के माहौल को ज़िम्मेदार मानते हैं. वो कहते हैं कि अब घर की जगह अपार्टमेंट ने ले ली है, मैदानों की जगह तंग गलियां बन गई हैं. इस सब से बढ़ कर लोगों का अपनी संस्कृति को भूलना है.