कृषि क़ानून के विरोध में किसान आंदोलन के 9 दिन हो गये हैं. घर बार छोड़ कर किसान अब तक न्याय के लिये डटे हुए हैं. किसान आंदोलन हर एक किसान के लिये बेहद महत्वपूर्ण है. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक किसान, सभी किसानों का साथ देने के लिये अपनी बेटी की शादी का हिस्सा न बन सका.

हम बात कर रहे हैं, दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन का हिस्सा बनने पहुंचे सुभाष चीमा की. बीते गुरुवार को 58 वर्षीय किसान सुभाष चीमा की बेटी की शादी थी. पर बेटी का कन्यादान करने के बजाये उन्होंने बाक़ी किसानों का साथ देना उचित समझा. सुभाष चीमा अमरोहा के रहने वाले हैं और उनका कहना है कि वो गांव में शादी की सारी व्यवस्था करके आये थे. उन्होंने ये भी कहा बेटा और रिश्तेदार शादी की सारी ज़िम्मेदारी निभा लेंगे. सुभाष चीमा की बेटी चाहती थी कि वो घर वापस आ जाये, लेकिन वो अहम मोड़ पर किसान भाइयों को छोड़ कर वापस नहीं गये. 

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सुभाष सीमा का कहना है कि वो आज जो कुछ भी हैं. खेती और किसानी की वजह से हैं. इस आंदोलन से ही हमारे भविष्य का निर्णय होगा. इसलिये इस समय उनके लिये किसान आंदोलन ‘दिल्ली चलो’ से बढ़ कर कुछ नहीं. सुभाष चीमा भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य भी हैं और उन्होंने बेटों से वीडियो कॉल पर शादी दिखाने को कहा था. इसके बाद वीडियो कॉल के ज़रिये ही उन्होंने अपनी बेटी को आर्शीवाद दिया.

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एक पिता पूरी ज़िंदगी अपनी बेटी की शादी के सपने देखता है. इसलिये हम समझ सकते हैं कि बेटी की शादी में न जा पाने का निर्णय लेना सुभाष सीमा के लिये कितना मुश्किल रहा होगा. उनकी इस हिम्मत को दिल से सलाम करते हैं. हम फिर यही कहेंगे. ये किसान ज़िद्दी हैं. अपना हक़ लेकर ही रहेंगे और हम सभी को उनका समर्थन करना चाहिये.