एग्रो वैज्ञानिकों और एसी वाले जीन बैंकों की चकाचौंध से दूर, वाराणसी का एक किसान अपना खुद का जीन बैंक बना रहा है. खास बात ये है कि ये बैंक उन सभी पारंपरिक तकनीकों पर आधारित है, जिसे सालों से भारतीय किसान इस्तेमाल करते आ रहे हैं.
ये जीन बैंक जय प्रकाश सिंह का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. जय प्रकाश ने भले ही दसवीं क्लास भी पास न की हो, लेकिन वे पिछले 20 सालों से खेती और बीजों के मामले में विशेषज्ञता हासिल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पारंपरिक तौर पर देश के किसानों के पास हाइब्रिड बीज नहीं होते हैं. ऐसे में वे इन बीजों का कुछ हिस्सा मिट्टी के बर्तनों में अगले सीज़न के लिए रख लेते हैं. इन बीजों को अगले दो-तीन सालों तक इस्तेमाल किया जाता है.
सिंह ने कहा कि ‘मैं दो दशकों से बिना किसी हाईटेक लैब के गेहूं, पैडी और दालें उगा रहा हूं. मैं इन बीजों को अपनी संतान की तरह मानता हूं और इसीलिए मैंने अब एक जीन बैंक का निर्माण करने का फ़ैसला किया है’.
अपने जीन बैंक के लिए ये शख़्स सभी बीजों को मिट्टी के बर्तन में डाल देता है और नमी से बचाने के लिए इन पर गुलाबी पेंट कर दिया जाता है. इन सालों में सिंह ने 460 प्रकार की पैडी, 120 प्रकार के गेहूं, 50 प्रकार की दालों का निर्माण किया है. इनमें से कई बीजों को राज्य सरकार ने भी रिलीज़ किया है.
सिंह के बढ़िया उपज वाले बीजों के निर्माण और सुरक्षा से लाखों किसानों के अलावा कई खेती के विशेषज्ञों को भी फ़ायदा हुआ है. सिंह के बीजों में बेहद कम मात्रा में पेस्टीसाइड्स और कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है. उन्होंने कहा कि ‘मैं अपने प्रयासों को मिट्टी में नहीं मिलाना चाहता. मैंने सरकार से कई बार गुज़ारिश की कि ‘मुझे थोड़ी ज़मीन उपलब्ध करा दी जाए या फ़िर बीजों को इकट्ठा करने के लिए कुछ फंड की सुविधा करा दी जाए’.
लेकिन सरकार से कोई मदद न मिलने के बाद सिंह ने खुद ही अपनी छोटी सी कमाई से अपने घर में एक छोटे से हॉल को जीन बैंक में तब्दील कर दिया है.
उन्होंने कहा कि ‘सरकार अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से मदद मांगती है और इसके लिए लाखों रुपये खर्च करती है और यहां मैं सरकार को सब कुछ मुफ़्त में उपलब्ध करवा रहा हूं, लेकिन मेरे बीजों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. ये न केवल मेरा निजी नुकसान होगा, बल्कि किसानों और देश को भी नुकसान पहुंचेगा’.