5 जुलाई को देश का यूनियन बजट पेश होने जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट पेश करेंगी.
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इससे पहले गुरुवार को संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वे पेश किया. आर्थिक सर्वे में देश की अर्थव्यवस्था में 8 फ़ीसदी विकास दर पाने के सुझाव दिए गए हैं, जिससे 2025 में ये 5 ट्रिलियन डॉलर को पार कर सकती है.
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ये सब तो ठीक है, लेकिन इतनी भारी भरकम बातें देश की आम जनता के समझ में नहीं आने वाली. देश की ग़रीब जनता को 8 फ़ीसदी विकास दर और 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था से भी कोई लेना देना नहीं है.
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देश हित में सोचें तो एज्युकेशन, एग्रीकल्चर, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, रेलवे और डिफ़ेंस जैसी भारी भरकम बातें भले ही अच्छी लगती हों, लेकिन एक आम आदमी को हर साल पेश होने वाले बजट से रोटी, कपड़ा, बिजली और पानी की कीमत में राहत मिलने की उम्मीद रहती है.
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सरकारें हर साल देश में ग़रीबी मिटाने, रोजगार देने, शिक्षा को बढ़ावा देने, अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं पर जोर देने, खाने-पीने की वस्तुएं सस्ती करने, पीने का पानी उपलब्ध कराने के वादे करती हैं, लेकिन ये वादे कभी पूरे नहीं होते. आम आदमी हर साल ख़ुद को ठगा महसूस करता है.
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हर रोज़ दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले ग़रीब को देश की इकोनॉमी के जटिल गणित से कोई लेना देना नहीं होता है. उसे बस हर दिन भर पेट खाना मिल जाए, वही उसके लिए इकोनॉमी की सबसे बड़ी जीत है.
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वहीं मिडिल क्लास को अपने बच्चों की शिक्षा, नौकरी, घर और भविष्य की चिंता होती है. जबकि उच्च वर्ग को इन सब चीज़ों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता उन्हें बस 500 करोड़ और 1000 करोड़ में डील करनी होती है.
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आम आदमी के तौर पर मैं इस बार बजट से यही उम्मीद करता हूं कि सरकार ने जो वादे चुनावों के वक़्त जनता से किये थे बस उन्हें पूरा कर दे. सरकार से मुझे एक ऐसे बजट की उम्मीद है जो देश के आम आदमी के हित में हो-
मेरा बजट ऐसा हो?
1- खाने-पीने की चीज़ें सस्ती हों.
एक आम आदमी को इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए. अगर केंद्र सरकार इस बार बजट में इन बातों पर अमल करे तो देश में रामराज तो ऐसे ही आ जायेगा.