हम आज VIP कल्चर की बहुत चर्चा करते हैं. एक विधायक भी गाड़ियों का काफ़िला लेकर निकलता है. नेताओं की बेहिसाब संपत्ति भी सुर्खियों में रहती है. लेकिन क्या आप किसी ऐसे नेता की कल्पना भी कर सकते हैं, जो 18 साल तक मुख्यमंत्री रहा हो, मगर इस्तीफ़ा देने के बाद बस (Bus) से अपने घर लौट गया हो. ये बात चौंकाने वाली ज़रूर है, लेकिन सच है. हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री (First Chief Minister of Himachal Pradesh) डॉ. यशवंत सिंह परमार (Yashwant Singh Parmar) कुछ ऐसी ही शख़्सियत थे.

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हिमाचल प्रदेश का किया गठन

डॉ. यशवंत सिंह परमार (Yashwant Singh Parmar) का जन्म 4 अगस्त, 1906 को सिरमौर रियासत में हुआ था. उनके पिता आनंद सिंह भंडारी इस रियासत के वरिष्ठ सचिव थे. डॉ. परमार ने ग्रेजुएशन लाहौर से किया और लखनऊ यूनिवर्सिटी से LLB करने के बाद PHD की डिग्री हासिल की.

पढ़ाई पूरी करने के बाद वो वापस सिरमौर आ गए और यहां न्यायाधीश बन गए. लेकिन एक विवादास्पद फ़ैसले की वजह से उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया और 1941 में प्रजामंडल में शामिल हुए. ये डॉ. परमार ही थे जिनकी कोशिशों से साल 1948 में 30 रियासतों को साथ मिलाकर हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया.

फिर जब साल 1952 में विधानसभा चुनाव हुए तो डॉ. परमार कांग्रेस पार्टी से मुख्यमंत्री बने. 1956 में हिमाचल को केंद्र शासित प्रदेश बन गया. 1963 में यशवंत परमार दोबारा सीएम बने और पंजाब में शामिल कांगड़ा और शिमला को हिमाचल प्रदेश में शामिल कराया. 1963 में वे तीसरी बार सीएम चुने गए और 1971 में उन्होंने हिमाचल (Himachal Pradesh) को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया.

डॉ. Yashwant Singh Parmar ने बदली Himachal Pradesh की तस्वीर

डॉ. परमार 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने प्रदेश के विकास के लिए काफ़ी काम किया. हिमाचल में सड़कों का जाल बिछाने का श्रेय यशवंत परमार को ही जाता है. वो सड़कों को पहाड़ की भाग्य रेखा कहते थे. इसके अलावा भी कई ऐसे काम किए जो हिमाचल के विकास और निर्माण में सहायक हुए.

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सीएम पद छोड़ा तो बस से लौटे घर

यशवंत परमार ने 28 जनवरी 1977 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद उन्होंने गाड़ी-बंगला सब छोड़ दिया और पैदल ही शिमला बस अड्डे की ओर चल दिये. यहां से उन्होंने बस पकड़ी और सिरमौर वापस आ गए.

राजनीति के अलावा डॉ. परमार को साहित्य में दिलचस्पी थी. वो न सिर्फ़ किताबें पढ़ना पसंद करते थे, बल्क़ि ख़ुद भी एक लेखक थे. उन्होंने अपनी लाइफ़ में 8 किताबें लिखी हैं.

ज़िंदगी में उन्होंने कमाई के नाम पर सिर्फ़ लोगों का प्यार कमाया. सीएम रहते हुए भी न अपने लिए मकान बनवाया और न ही कार खरीदी. उनकी ईमानदारी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि निधन के वक्त भी उनके अकाउंट में महज़ 563.30 रुपये थे. बता दें, 2 मई 1981 को उनका निधन हो गया था.

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