दिल्ली बॉर्डर पर हज़ारों किसान अपने हक़ के लिए लगभग 1 महीने से बैठे हैं. जहां किसान एक तरफ़ लड़ रहे हैं वहीं देश के कई हिस्सों से आंखें नम कर देने वाली ख़बरें आ रही हैं. 

Outlook की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के अमृतसर में बेहद दुखद घटना घटी है. अमृतसर के एक किसान ने अपनी पूरी गोभी की फ़सल नष्ट कर दी. वजह? होलसेल मार्केट में उसकी फ़सल 75 पैसे प्रति किलो में बिक रही थी.  

Times of India की रिपोर्ट के अनुसार, सराई गांव के अजीत सिंह ने एक एकड़ में तैयार गोभी की फ़सल नष्ट कर दी. अजीत सिंह ने Times of India से बात करते हुए बताया कि उसने फ़सल उगाने में लगभग 35 से 40 हज़ार रुपये ख़र्च किए थे और उसे उम्मीद थी कि उसे फ़सल के कम से कम 1 लाख रुपये मिलेंगे. 

Krishi Jagran
पिछले साल गोभी के दाम 11-14 रुपये मिल रहे थे लेकिन इस साल तो होलसेल मार्केट में 1 रुपये से भी कम मिल रहे हैं. फ़सल काटकर होलसेल मार्केट में लेकर जाने का कोई मतलब नहीं था इसलिए मैंने फ़सल नष्ट कर दी. 

-अजीत सिंह

अजीत सिंह ने ये भी बताया कि सब्ज़ियों के ट्रक दिल्ली और अन्य शहरों में नहीं पहुंच रहे हैं इसलिए दाम और गिर गए हैं. सिंह ने ये भी बताया कि जम्मू और कश्मीर से भी ज़्यादा डिमांड नहीं आ रही. 

एक दूसरे किसान सतनाम सिंह ने Times of India को बताया कि वो 30 किलो का बोरा लेकर होलसेल मार्केट पहुंचा था लेकिन उसे सिर्फ़ 22 रुपये मिले.  
ये किसान सब्ज़ियों पर भी एमएसपी को समर्थन कर रहे थे. उनका कहना था कि अगर सब्ज़ियों पर एमएसपी होती तो आज उन्हें ये दिन नहीं देखना पड़ता.  

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कुछ दिनों पहले, उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले से भी ऐसी ही ख़बर आई थी. New Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक़, ज़िले के मायापुरी गांव में एक किसान ने गोभी की खड़ी फ़सल बर्बाद कर दी. रमेश का कहना था कि उसे गोभी की 1 रुपये से भी कम क़ीमत मिल रही थी. रमेश ने भी विरोध करते किसानों को अपना समर्थन दिया. 

The Telegraph

बीते 16 दिसंबर को बिहार के समस्तीपुर ज़िले के मुक्तापुर गांव में एक किसान, ओमप्रकाश यादव ने अपनी 5 एकड़ ज़मीन पर ट्रैक्टर चला दिया था. The Telegraph की रिपोर्ट के अनुसार, यादव को मंडी में गोभी के 1 रुपये प्रति किलो या 100 रुपये क्विंटल मिल रहे थे. 

यादव ने बताया था कि गोभी के औसतन 700-1500 किलो मिलते थे लेकिन पैंडमिक की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ी है और सब्ज़ियों के दाम भी गिरे हैं. 
2006 में नीतिश कुमार ने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) एक्ट हटा दिया था. सरकारी मंडियों के अभाव में बिहार के किसान प्राइवेट व्यापारियों को फ़सल बेचते हैं और दाम भी यही प्राइवेट व्यापारी तय करते हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, अप्रैल में बेंगलुरू के एक किसान ने बताया था कि मज़दूरों के अभाव में वे फ़सल मार्केट तक नहीं पहुंचा पाया और उसने फ़सल को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ दिया. कर्नाटक के ही एक किसान ने अपनी 15 टन टमाटर की फ़सल सूखे टैंक में डाल दी थी. बेलागावी के एक किसान ने एक एकड़ में उगाई बंदगोभी की फ़सल में पशुओं को चरने के लिए छोड़ दिया था.


देश में किसानों की स्थिति बद से बद्तर होती जा रही है लेकिन शायद कोई सुनने वाला नहीं है.